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और यह क्या होने लगा, ध्वनि ही ध्वनि गूंजती रह गई ! हाथ तो कुछ आया नहीं, ऐसा लगता है। सोचा था, कुछ ज्ञान लेकर लौटेंगे, कुछ पोथी थोड़ी और बड़ी हो जाएगी बुद्धि की, थोड़ा और भार लेकर लौटेंगे, यह क्या हुआ जा रहा है? सिद्धात तो हाथ नहीं आ रहे, संगीत हाथ आ रहा है। संगीत लेने तो आए भी नहीं थे, यह तो सोचा भी नहीं था। तो मन में चिंता भी व्यापती है। और ऐसा भी लगता है, कहीं ऐसा तो नहीं हम गंवाए दे रहे हैं? क्योंकि सदा तो केवल हमने जीवन में शब्द ही जोड़े, सिद्धात ही जोड़े। इसलिए स्वभावतः हमारा अतीत कहता है, यह क्या कर रहे हो? कुछ संगृहीत कर लो, कुछ ज्ञान पकड़ लो, कुछ जुटा लो, काम पड़ेगा पीछे।
इस मन की बातों में मत पड़ना। अगर तुम्हें संगीत सुनाई पड़ने लगा, अगर ध्वनि सुनाई पड़ने लगी, अगर भीतर लहर आने लगी, तो शब्द से तुम पार निकले। शब्द से पार जाता है संगीत | इसलिए तो संगीत सभी को आंदोलित कर देता है। संगीत की कोई भाषा सीमित नहीं है। हिंदी बोलो; जो हिंदी समझता है, समझेगा। चीनी बोलो; जो चीनी समझता है, समझेगा। जो चीनी नहीं समझता, उसके लिए तो सब व्यर्थ है। लेकिन वीणा बजाओ, सारे जगत में कहीं भी वीणा बजाओ.. ।
स्विटजरलैंड में एक विश्व कवि-सम्मेलन था। उसमें भारत से दो कवि भाग लेने गए - एक हिंदी के कवि और एक उर्दू के। उर्दू के कवि थे - सागर निजामी । हैरानी हुई कि हिंदी के कवि को तो लोगों ने सुन • लिया सौजन्यतावश, लेकिन कोई मांग न आई कि फिर-फिर सुनाओ। लेकिन सागर निजामी के लिए तो लोग पागल हो गए। खूब मांग आने लगी कि फिर से सुनाओ, फिर से सुनाओ। खुद सागर निजामी हैरान हुआ कि मामला क्या है इनको समझ में तो कुछ आता नहीं। लेकिन तरजुम गीत तो पकड़ में आता था । शब्द पकड़ में नहीं आते थे। हिंदी कविता तो आधुनिक कविता थी । उसमें कोई न कोई छंद न कोई लयबद्धता । सुन ली, अगर भाषा समझ में आती तो शायद कुछ समझ भी आ जाता, भाषा समझ में नहीं आती तो फिर तो कुछ बचा नहीं। छह घंटे तक सागर निजामी को लोगों ने बार-बार सुना । थका डाला, मगर सागर निजामी चकित ! पीछे पूछा लोगों से कि बात क्या है ? तुम्हारी समझ में तो कुछ आता नहीं?
उन्होंने कहा, समझ का कोई सवाल भी नहीं । वह जो तुम गाते हो, वह जो धुन है, वह पकड़ लेती है, वह हृदय को मथ जाती है। हम समझे नहीं, फिर भी समझ गए।
यहां जो मैं तुमसे बोल रहा हूं, उसमें अगर तुम्हें शब्द ही समझ में आएं तो परिधि समझ में आई। अगर संगीत पकड़ में आ जाए तो केंद्र पकड़ में आ गया। अगर शब्द ही ले कर गए तो तुम थोड़े और बुद्धिमान हो जाओगे, वैसे ही तुम बुद्धिमान थे और बीमारी बढ़ी। अगर संगीत पकड़ में आया, तो तुम सरल हो कर जाओगे। वह जो तुम बुद्धिमानी लाए थे वह भी यहीं छोड़ जाओगे।
मैं भरा, उमड़ा - भरा, उमड़ा गगन भी। आज रिमझिम मेघ, रिमझिम हैं नयन भी ।
कोन कोना है गगन का आज सूना कोन कोना प्राण मन का आज सूना