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तुम्हें अपनी भूमि मिल गई तुम्हारा मौसम आ गया, तुम्हारी ऋतु आ गईफलने की, फूलने के
कभी-कभी ऐसा होता है, किसी की वाणी सुनते ही -तत्क्षण तुम्हारे भीतर एक खटके की तरह कुछ हो जाता है, द्वार खुल जाते हैं। किसी को देखते ही किसी क्षण अचानक प्रेम उभय आता है। किसी के पास पहुंचते ही अचानक बड़ी गहन शांति घेर लेती है आनंद के स्रोत फूटने लगते हैं। यह अकारण नहीं होता। जहां भी तुम्हारा मेल बैठ जाता है, जहां भी तुम्हारी तरंग मेल खा जाती है, वहीं यह हो जाता है।
___यहां मैं बोलता हूं साफ दिखाई पड़ जाता है-कोन तरंगित हुआ कोन नहीं तरंगित हुआ। कुछ पत्थर के रोड़े की तरह बैठे रह जाते हैं, कुछ डोलने लगते हैं। किसी के हृदय को छू जाती है बात, कोई बुद्धि में ही उलझा रह जाता है।
तुम मेरे पथ के बीच लिए काया भारी भरकम क्यों जम कर बैठ गए कुछ बोलो तो! क्यों तुमको छूता है मेरा संगीत नहीं? तुम बोल नहीं सकते तो झूमो, डोलो तो! रागों की रोकी जा सकती है राह नहीं, रोड़ो, हठधर्मी छोड़ो मुझसे मन जोडो। तुमसे भी मधुमय शब्द निकल कर गूंजेंगे तुम साथ जरा
मेरी धारा के हो लो तो! जब भी तुम्हारा कहीं मेल खा जाए, तब तुम और सब चिंताएं छोड़ देना। जहां तुम्हारा मन का रोड़ा पिघलने लगे, जहां तुम्हारे सदा के जमे हुए चट्टान जैसे हो गए हृदय में तरंगें उठने लगें, तुम डोलने लगो, जैसे बीन को सुन कर सांप डोलने लगता है... तो तुम चकित होओगे? सांप के पास कान नहीं होते। वैज्ञानिक बड़ी मुश्किल में पड़े जब पहली दफे यह पता चला कि सांप के पास कान होते ही नहीं, वह बीन सुन कर डोलता है। सुन तो सकता नहीं तो डोलता कैसे है? तो या तो बीन-वादक कुछ धोखा दे रहा है, सांप को किसी तरह से प्रशिक्षित किया है। तो बीन-वादकों को दूर बिठाया गया,