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लगो। और आनंदमग्न जीने का एक ही उपाय है: अपेक्षाएं पूरी करने मत लग जाना। जिनकी तुम अपेक्षाएं पूरी करोगे, उन्हें तुम कभी प्रसन्न न कर पाओगे, यह और एक मजा है। तुम अपने को विकृत कर लोगे और वे कभी प्रसन्न न होंगे। क्योंकि तुम्हारे प्रसन्न हुए बिना वे कैसे प्रसन्न हो सकते हैं? तुमने देखा, तुम्हारी पत्नी तुमसे प्रसन्न है? हालांकि तुम सिर धुनते रहते हो कि तेरे लिए ही मरा जाता हूं पिसा जाता हूं, सिर तोड़ता दिन-रात - और तू प्रसन्न नहीं है! तुम्हारे बच्चे तुमसे प्रसन्न हैं? हालाकि तुम छाती पीट-पीट कर यही कहते रहते हो कि तुम्हारे लिए ही जी रहा हूं अन्यथा जीने में और क्या है? तुम पढ़-लिख जाओ, तुम बड़े हो जाओ, सुख-संपन्नता को उपलब्ध हो जाओ-इसीलिए सब कुछ लुटाए जा रहा हूं। तुम्हारे लिए सब कुछ दाव पर लगाया है और तुम अनुगृहीत भी नहीं हो !
तुम अपेक्षाएं पूरी कर रहे हो तो तुम प्रसन्न तो हो ही नहीं सकते जब तुम प्रसन्न नहीं हो तो तुम्हारे बच्चे प्रसन्न नहीं हो सकते। वे जानते हैं, जबर्दस्ती तुम कर रहे हो। तुम्हारे ढंग से पता चलता है। बाप कहते हैं बच्चों के सामने कि तुम्हारे लिए घसिट रहे हैं, मर रहे हैं, खप रहे हैं! यह कोई बात हुई? यह कोई प्रेम हुआ? यह तुम्हारा आनंद हुआ? यह तो आलोचना हुई। यह तो शिकायत हुई। यह तो तुम यह कह रहे हो कि न हुए होते पैदा तो अच्छा था तुम्हारी वजह से यह सब झंझट हो रही है कि अब कर ली है शादी तो अब ठीक है। लेकिन इससे तुम्हारी पत्नी प्रसन्न होगी? और ये बच्चे तुमसे यह सीख रहे हैं। ये अपने बच्चों के साथ यही करेंगे। ऐसे भूलें दोहराई जाती हैं पीढ़ी-दर-पीढ़ी। तुम प्रसन्न हो जाओ!
तुम अगर काम कर रहे हो तो एक बात ईमानदारी से समझ लो कि तुम अपने आनंद के लिए कर रहे हो। बच्चों का उससे हित हो जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहीं है। तुम्हारी पत्नी को वस्त्र और भोजन मिल जाएगा, यह गौण है, यह लक्ष्य नहीं है। काम तुम अपने आनंद से कर रहे हो, यह तुम्हारा जीवन है। तुम आनंदित हो इसे करने में। और यह तुम्हारी पत्नी है, तुमने इसे चाहा है और प्रेम किया है, इसलिए तुम ...... | यह कोई सवाल ही नहीं है कहने का कि मैं खपा जा रहा हूं मैं मरा जा रहा हूं। यह कोई भाषा है? यह तुम बच्चों से कह रहे हो, उनके मन में जहर डाल रहे हो । इन्होंने तुम्हारी कभी प्रसन्न मुद्रा नहीं देखी।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दफा फोटो निकलवाने गया, तो बहुत तरह से कैमरा जमाया फोटोग्राफर ने, लेकिन उनकी शक्ल ठीक बने ही न। तो उसने कहा कि बड़े मियां, एक क्षण को मुस्कुरा दो, फिर आप अपनी स्वाभाविक मुद्रा में आ जाना!
मुस्कुराना लोग भूल गए हैं, हंसना भूल गए हैं। हंसना पाप जैसा मालूम पड़ता है। लोग रोती सूरतें बना लिए हैं। इन्हीं रोती सूरतो को लेकर परमात्मा के पास जाओगे? उस पर कुछ तो दया करो ! और इशारा समझ में आ जाए तो छोटा-सा इशारा काफी है।
राह में एक सितारा भी बहुत होता है आंखवाले को इशारा भी बहुत होता है