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बीच मझधार में जाने की जरूरत क्या है
डूबना हो तो किनारा भी बहुत होता है सहजता सूत्र है। जागना हो तो सहजता के सूत्र को पकड़ लो। और सब खो जाए, सहजता का धागा न खोए! तम्हारे जीवन की सारी मणियां सहजता के धागे में पिरो जाएं तम गजरे बन जाओगे उसके गले के योग्य!
निहारिका से वंद्व कर रविकर-निकर विजयी बने प्रत्यूष के पीयूष-कण पहुंचा रहे तुम तक घने कोमल मलय के स्पर्श -सौरभ से हिमानी से सने दुलरा तुम्हें जाते, जगाते, कूजते तरु के तने भोले कुसुम, भूले कुसुम जो आज भी जागे न तुम तो और जागोगे भला किस जागरण- क्षण में कुसुम? यह स्वप्न टूटेगा न क्या, भोले कुसुम, भूले कुसुम लो तितलियां मचली चली सतरंग चीनांशुक पहन छवि की पुतलियों सी मचलती, मदभरे जिनके नयन हर एक कलि के कान में कहती हुई : जागो बहन!' जागो बहन, दिन चढ़ गया, खोलो नयन, धो लो बदन, अनमोल रे यह क्षण, न खोने का शयन बनमय कुसुम,
कब और जागोगे भला, भोले कुसुम, भूले कुसुम! सब मौजूद है और तुम सोये हो हवा चल उठी, सूरज निकल आया, तितलियां गंजने लगी, मलय बहार बहने लगी और कहने लगी जागो कुसुम, भूले कुसुम! सब तैयार है, सुबह हो गई, तुम सोए पड़े! तुम बेहोश पड़े!
परमात्मा प्रतिपल तैयार है, लेकिन तुम ऐसे अंधेरे में और ऐसी उदासी में और ऐसे नर्क में घिरे हो! और नर्क तुम्हारा अपना बनाया हुआ है। तुम उसके कारण हो।
हजारों लोगों के जीवन में देख कर मैं यह पाता हूं कि तुम अपने नर्क के कारण हो और मैं यह नहीं कहता कि अतीत जन्मों में तुमने कोई पाप किए थे, इसलिए तुम नर्क में हो। मैं तुमसे कहता हूं : अभी तुम भ्रांतियां कर रहे हो, इसलिए तुम नर्क में हो। क्योंकि अतीत जन्मों में किए पापों को ठीक करने का कोई उपाय नहीं। अब तो पीछे जाने की कोई जगह नहीं। वह तो धोखा है। मैं तो तुमसे कहता हूं : अभी भी तुम वही कर रहे हो। उनमें एक बुनियादी बात है: सहजता को मत छोड़ना।
कबीर ने कहा है : साधो सहज समाधि भली!
तुम सहज और सत्य और सरल...... फिर जो भी कीमत हो, चुका देना। यही संन्यास है। कीमत चुकाना तपश्चर्या है। तुम झूठ मत लादना। तुम झूठे मुखौटे मत पहनना।
झेन फकीर कहते हैं : खोज लो अपना असली चेहरा, ओरिजिनल फेस। सहजता असली चेहरा