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होगा राज्य परमात्मा का। नहीं, जीसस कहते हैं देअर्स इज दि किंगडम आफ गॉड।' उनका ही है राज्य परमात्मा का। है ही इसी क्षण! हो गया! धन्य हैं दरिद्र!
अकिंचन उसी दरिद्रता का नाम है। ऐसी दरिद्रता तो समृद्धि का दवार बन जाती है। ऐसी दरिद्रता, कि एक बार उसे अंगीकार कर लिया तो फिर तुम कभी दरिद्र होते ही नहीं, क्योंकि फिर प्रभु का सारा राज्य तुम्हारा है।
अकिंचनभव:......| ऐसा जान कर कि मैं कुछ भी नहीं हूं, ऐसे भाव से कि कुछ भी नहीं है इस जगत में, एक स्वप्न है-एक स्वास्थ्य पैदा होता है; स्वयं में स्थिति बनती है; भागदौड़ जाती है, आपाधापी मिटती है ज्वर छूटता है, बीमारी मिटती है; आदमी अपने घर लौट आता है, अपने में ठहरता है।
ऐसा अपने में ठहर जाना ही-जनक कहते हैं-वास्तविक संन्यास है। कुछ संन्यासी के वस्त्र धारण कर लेने से थोड़े ही कोई संन्यासी हो जाता है! कौपीन के धारण करने से ही तो कुछ नहीं हो जाता। संन्यास की दीक्षा लेने से ही तो नहीं कुछ हो जाता। संन्यास की दीक्षा शायद एक प्रतीक हो एक शुभारंभ हो; शुभ मुहूर्त में एक संकल्प हो| पर संन्यास लेने से ही तो कुछ नहीं हो जाता। संन्यास ले कर यात्रा समाप्त नहीं होती, शुरू होती है। वह पहला कदम है। उसी पर जो अटक गए वे बुरी तरह भटक गए। वह तो तुम्हारी घोषणा थी। जिस दिन तुम संन्यासी होते हो उस दिन थोड़े ही तुम संन्यासी हो जाते। उस दिन तुमने घोषणा की कि अब मैं संन्यासी होना चाहता हूं; अब मैं संन्यास के मार्ग पर चलना चाहता हूं। तुम्हारी घोषणा से तुम संन्यासी थोड़े ही हो जाते हो!
'जो कौपीन धारण करने पर भी दुर्लभ है, वैसा परम संन्यास अकिंचन- भाव के पैदा होते ही उपलब्ध हो जाता है। इसलिए त्याग और ग्रहण दोनों को छोड़ कर मैं सुखपूर्वक स्थित हो'
त्यागदाने विहायास्मादहमासे यथासुखम्।
इसलिए अब न पकड़ता हूं न छोड़ता हां न अब किसी चीज से मेरा लगाव है, न मेरा विरोध है। अगर विरोध रहा तो लगाव जारी है। विरोध होता ही उनसे है जिनसे हमारा लगाव जारी रहता
है।
इसे समझना। क्योंकि यह बहुत आसान है-लगाव को विरोध में बदल लेना। लगाव से मुक्त होना बड़ा कठिन है। लगाव को विरोध में बदल लेना बड़ा सुगम है। तुम धन के पीछे दौड़ते थे, बहुत दुख पाया, बहुत पीड़ा उठाई कोई सुख न मिला, विफलता-विफलता हाथ लगी-तुम रोष से भर गए; तुम धन के दुश्मन बन गए; तुम कहने लगे : धन पाप है; छऊंगा भी नहीं। लेकिन मन में अभी भी धन के प्रति कहीं न कहीं किसी गहरे तल पर कोई आकर्षण है। धन की तुम बात अभी भी किए चले जाओगे।
एक जैन मुनि के पास एक दफा मुझे ले जाया गया। उन्होंने एक भजन गाया। जो उनके पास बैठे थे, सब धनी लोग थे। उनके भक्तों के सिर हिलने लगे। भजन था कि 'मुझे सम्राटों के