________________
जो स्वस्थ हैं वे सुखी नहीं हैं। जो सुंदर हैं वे भी सुखी नहीं हैं। तो ऐसा लगता है कि शरीर के साथ सुख संभव ही नहीं है। बीमार दुखी है, समझ में आता है; लेकिन स्वस्थ क्या कर रहा है? वह भी कोई सुखी नहीं दिखायी पड़ता।
तुमने कभी खयाल किया? जब तुम बीमार होते हो तब तुम और ज्यादा दुखी हो जाते हो, बस। जब तुम स्वस्थ होते हो तब तुम उतने दुखी नहीं होते, लेकिन होते तो दुखी ही हो। सिर्फ कभी तुम इसलिए नाचे हो सड़क पर कि स्वस्थ हूं, आज कोई बीमारी नहीं । नहीं, तब पता ही नहीं चलता । अगर स्वस्थ हो तो स्वास्थ्य का पता नहीं चलता; भूल ही जाते हो। बीमार हो तो बीमारी का पता चलता है और पीड़ा होती है।
जो कुरूप हैं वे दुखी हैं। प्रतिपल उनको एक ही अड़चन लगी है कि कुरूप हैं। सजाते -संवारते हैं, फिर भी सम्हलता नहीं। जो सुंदर हैं, उनसे पूछो। वे कुछ सुखी हों, ऐसा मालूम नहीं पड़ता । की बहुत बड़ी अभिनेत्री मनरो ने आत्महत्या कर ली। सुंदरतम स्त्री थी। प्रेसीडेंट कैनेडी भी उसके लिए दीवाने थे। और बड़े - बड़े प्रेमी थे उसके। अमरीका में शायद ही कोई धनपति हो जो उसके लिए दीवाना न था। वह जिसको चाहती उसको पा सकती थी, जो चाहती पा सकती थी । आत्महत्या कर ली! हुआ क्या? सुखी न थी। सुंदर होने से कोई सुखी नहीं होता, असुंदर होने से दुखी जरूर होता है।
इस जीवन में कुछ ऐसा मालूम पड़ता है कि शरीर के साथ सुखी होना संभव ही नहीं है| शरीर के साथ सुख का कोई संबंध नहीं है। कहीं तो शरीर का दुख है, कहीं वाणी दुखी है। कोई इसलिए दुखी है कि उसके पास बुद्धि नहीं है, विचार नहीं, वाणी नहीं। और जिनके पास बुद्धि है, वाणी है, विचार है, उनसे पूछो। उनमें से अनेक आत्महत्या कर लेते हैं, पागल हो जाते हैं।
पश्चिम में जितने बड़े विचारक पिछले पचास वर्षों में हुए उनमें से करीब-करीब आधे पागल हुए वे बड़े बुद्धिमान थे। नीत्शे! प्रगाढ़ प्रतिभा थी वाणी की। सदियों में कभी नीत्शे जैसी वाणी और विचार की क्षमता किसी को मिलती है। नीत्शे की कोई किताब पढ़ें- दस स्पेक जरथुस्त्रा पढ़ें- तो ऐसा लगता है, कोई प्रॉफेट, कोई पैगंबर, कोई तीर्थंकर बोल रहा है। लेकिन पागल हो कर मरा नीत्शे । और जीवन भर दुखी रहा। मामला क्या था?
जिनके पास वाणी नहीं है, वे गूंगे हैं। और जिनके पास वाणी है, वे विक्षिप्त हो जाते हैं। जिनके पास विचार नहीं है, वे दीन-हीन हैं, वे तड़पते हैं कि काश, हमारे पास बुद्धि होती। जिनके पास है,
बुद्धि का क्या करते हैं? खुद के लिए और झंझटें खड़ी कर लेते हैं, हजार उलझनें खड़ी कर लेते हैं, चिंताओं का जाल, संताप का जाल फैला लेते हैं।
कहीं वाणी दुखी है और कहीं मन दुखी है। अगर कुछ भी न हो, शरीर स्वस्थ हो, विचार कुशल हो, अभिव्यक्ति की क्षमता हो, जीवन में सब भरा-पूरा हो, तो भी मन दुखी है। क्योंकि मन का क नियम है - जो नहीं है, उसकी माग मन का नियम है। जो है, उसमें मन को कोई रस नहीं है; जो नहीं है, उसी में रस है। अभाव में रस है। तो मन तो दुखी रहेगा ही। मन को सुखी करने का कोई उपाय