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'मुझको ठहरने से, चलने से या सोने से अर्थ और अनर्थ कुछ नहीं है:।' सुनो!
'मुझको ठहरने से, चलने से या सोने से अर्थ और अनर्थ कुछ भी नहीं है। इस कारण मैं ठहरता हुआ, जाता हुआ और सोता हुआ भी सुखपूर्वक स्थित हूं'
सुना है कभी इससे ज्यादा कोई क्रांतिकारी सूत्र! अर्थानौं न मे स्थित्या गत्वा वा शयनेन वा।
जनक कहते हैं : सो कर भी मैं वही हूं और जाग कर भी मैं वही हां भेद नहीं है। और न मुझे अर्थ और अनर्थ में कोई भेद है।
तिष्ठन् गच्छन् स्वपस्तस्मादहमासे यथासुखम्। मैं तो नींद आ जाती है तो सो जाता हूं; चलना होता है तो चल लेता हूं; बैठना होता है तो बैठ जाता हूं।
झेन फकीर निरंतर यही कहते रहे हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि झेन फकीरों को अष्टावक्र की गीता पर ध्यान देना चाहिए। इससे बड़ा झेन वक्तव्य और दूसरा नहीं है।
बोकोजू से किसी ने पूछा कि तुम करते क्या हो? तुम्हारी साधना क्या है? क्योंकि न हम तुम्हें कभी ध्यान में बैठे देखते, न कभी तुम्हें प्राणायाम करते देखते, न तुम्हें हम कभी योगासन लगाते देखते, न पूजा, न पाठ। तुम करते क्या हो? तुम्हारी साधना क्या है?
बोकोजू ने कहा: जब नींद आती है तब मैं सो जाता हूं और जब भूख लगती है तब भोजन कर लेता हूं। जब चलने का होता है भाव तो चल लेता हूं। जब बैठने का होता खै भाव तो बैठ जाता हूं। यही मेरी साधना है।
'मुझको ठहरने से, चलने से या सोने से अर्थ और अनर्थ कुछ नहीं है। इस कारण मैं ठहरता हुआ, जाता हुआ और सोता हुआ भी सुखपूर्वक स्थित हूं'
अब कोई चुनाव न रहा।
एक युवक को मेरे पास लाया गया। उसका दिमाग खराब हुआ जा रहा था। विशविद्यालय का विदयार्थी था। मैंने पूछा : तुझे हुआ क्या? तुझ पर कौन-सी मुसीबत आ गयी है? यह दिमाग को इतना अस्तव्यस्त क्यों कर लिया है?' उसने कहा कि मैं स्वामी शिवानंद का शिष्य हूं। उनकी ही किताबें पढ़-पढ़ कर योगसाधन कर रहा हूं। तो स्वामी शिवानंद ने लिखा है कि पांच घंटे से ज्यादा मत सोना।
तो मैं पांच घंटे सोता हूं। और लिखा है, तीन बजे रात उठ आना तो मैं तीन बजे रात उठ आता हूं। अब तीन बजे रात जो उठेगा उसे दिन में नींद आएगी। और वह विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था। 'तो दिन में मुझे नींद आती है। तो किताबों में खोजबीन की तो शिवानंद ने लिखा है कि दिन में नींद आए तो उसका अर्थ है कि तुम्हारा भोजन तामसी है, तो भोजन को शुद्ध करो। तो मैं सिर्फ दूध पीता हूं।