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में तुम स्मृत हो जाते हो अपने केंद्र से। जैसे ही दौड़ गई, तुम अपने में ठहरे।
लोग पूछते हैं : 'स्वयं में कैसे जाएं?'
स्वयं में जाने में जरा भी कठिनाई नहीं है; इससे सरल कोई बात ही नहीं है। स्वयं में जाना कठिन होगा भी कैसे? क्योंकि तुम स्वयं तो हो ही । स्वयं में तो तुम हो ही। इसलिए असली सवाल यह नहीं है कि हम स्वयं में कैसे जाएं। असली सवाल यही है कि हम 'पर' से कैसे छूटें । छूटे नहीं कि पहुंचे नहीं| इधर 'पर' पर पकड़ छोड़ी कि स्वयं में बैठ गए। यह सवाल नहीं है कि हम अपने में कैसे आएं। इतना ही सवाल है कि हम जिन चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं, उनकी व्यर्थता कैसे देखें !
हाय, क्या जीवन यही था !
एक बिजली की झलक में
स्वप्न औ' रसरूप दीखा
हाथ फैले तो मुझे निज
हाथ भी दिखता नहीं था हाय, क्या जीवन यही था !
एक झोंके में गगन के
तारकों ने जा बिठाया मुट्ठियां खोलीं, सिवा कुछ
कंकड़ों के कुछ नहीं था हाय, क्या जीवन यही था !
गीत से जगती न थी
चीख से दुनिया न घूमी
हाय लगते एक से अब
गान औ' क्रंदन मुझे भी
छल गया जीवन मुझे भी हाय, क्या जीवन यही था !
जिसे तुमने अब तक जीवन जाना है, उसे खुली आंख से देख लो। बस इतना काफी है। और तुम अकिंचन होने लगोगे |' अकिंचन' शब्द का ठीक-ठीक अर्थ वही है जो जीसस के वचन का है। जीसस ने कहा है 'ब्लैसेड आर दि पुअर । देअर्स इज दि किंगडम आफ गॉड।' धन्यभागी हैं दरिद्र उनका ही है राज्य परमात्मा का ! और खयाल करना, जीसस नै यह नहीं कहा कि धन्यभागी हैं दरिद्र उनका