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बुद्ध तो गये, बहुत समय हुआ आज भरोसा आता नहीं कि रहे होंगे न रहे होंगे। कहानी तो कहानी हो गई। जीसस गए, महावीर गए। आज कोई चाहिए, जो ठीक तुम जैसा है सब तरह से - हड्डी-मांस-मज्जा है, देह है, जवानी, बुढ़ापा, बीमारी, मौत है, ठीक तुम जैसा है सब तरह से - फिर भी किसी अलौकिक लोक में जीता है, किसी विभा से भरा है। एक अर्थ में ठीक तुम जैसा है और एक अर्थ में कहीं से पार हो गया है।
तुम्हारी आकांक्षा यह होती है कि भगवान अगर कोई व्यक्ति घोषणा करे तो वह बिलकुल तुम जैसा नहीं होना चाहिए। तो तुमने किताबें भी लिखी हैं, वे झूठी हैं।
जैन कहते हैं कि महावीर के पसीने में बदबू नहीं आती थी- झूठ। क्योंकि महावीर का शरीर भी मनुष्य का शरीर है। मनुष्य के शरीर की ग्रंथियां जैसा काम करती हैं, महावीर का शरीर भी करेगा काम। जैन कहते हैं, महावीर को सांप ने काटा तो खून नहीं निकला, दूध निकला । या तो मवाद रही होगी, सफेद दिखाई पड़ गई होगी तो समझा कि दूध है। अब पैर में से अगर दूध निकले तो आदमी सड़ जाए। खून चाहिए, दूध से काम नहीं चलता । और शरीर में अगर दूध चल रहा हो तो आ कभी का मर जाए। एकाध जैन जा कर अस्पताल में कोशिश करवा ले, निकलवा दे खून बाहर और दूध चढ़वा दे। कितनी देर जीता है, देख ले ! या कोई जैन मुनि कर दे।
जैन कहते हैं, महावीर पाखाना इत्यादि मलमूत्र नहीं करते। ये सारी चेष्टाएं हैं यह सिद्ध करने की कि वे हमारे जैसे नहीं हैं। हमारे जैसे नहीं हैं तो फिर हम मान सकते हैं कि भगवान हैं। अगर हमारे जैसे हैं तो फिर हम कैसे मानें कि भगवान हैं पू
मेरी सारी चेष्टा यही है कि मैं बिलकुल तुम जैसा हूं और फिर भी तुम जैसा नहीं हूं अगर मैं बिलकुल तुम जैसा नहीं तो मुझसे तुम्हारे लिए कोई लाभ नहीं है। क्या करोगे तुम? अगर महावीर को संबोधि मिल गयी तो मिल गयी होगी- उनके शरीर में खून नहीं, दूध बहता था। तुम्हारे शरीर में तो नहीं बहता दूध, तुमको कैसे मिलेगी? तो महावीर बने ही इस ढंग से थे, पसीने में बदबू नहीं, खुशबू आती थी| तुम्हारे पसीने में तो बदबू आती है, खुशबू नहीं आती। कितने ही डियोडरेंट साबुन का उपयोग करो, पाउडर छिडको, फिर भी बदबू आती है। तो तुम कैसे समाधिस्थ होओगे, तुम कैसे कैवल्य को उपलब्ध होओगे?
वही कथाएं बुद्ध और जीसस के बाबत और हरेक के बाबत गढ़ी गयी हैं-सिर्फ एक बात सिद्ध करने के लिए कि वे मनुष्य नहीं हैं, परमात्मा हैं।
वे ठीक तुम जैसे मनुष्य थे| जैन तो कहते हैं, महावीर मलमूत्र नहीं करते, महावीर की मौत ही पेचिश की बीमारी से हुई। छह महीने तक दस्त लगे, उससे, बीमारी से मौत हुई। बुद्ध का प्राणांत विषाक्त भोजन करने से हुआ। कृष्ण पैर में तीर लगने से मरे । ये सारी घटनाएं लीपी-पोती जाती हैं और चेष्टा की जाती है इस तरह बताने की.......... लेकिन इस चेष्टा के कारण ही मनुष्य और परमात्मा का संबंध टूट जाता है। संबंध तो तभी हो सकता है जब परमात्मा कुछ तुम जैसा हो और कुछ तुम जैसा नहीं, तो संबंध जुड़ सकता है, तो सेतु बन सकता है।