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तो रोशनी बिखरेगी।
जब भी समाधि लगती है किसी के जीवन में, फूल खिलता है तो बटता है। सारे शास्त्र ऐसे ही जन्मे। शास्त्र का जन्म समाधि के बंटने के कारण होता है। शास्त्र और किताब का यही फर्क है। किताब आदमी लिखता है, चेष्टा करता है। शास्त्र समाधि से सहज निकसित होता है, कोई चेष्टा नहीं है, कोई प्रयास नहीं है। समाधि अपने-आप शास्त्र बन जाती है। समाधि से निकले उपनिषद, निकले वेद, निकला कुरान, निकली बाइबिल, निकला धम्मपद। ये समाधि के क्षण से बंटे हैं।
समाधि का अर्थ है: तुमने पा लिया!
समाधि बंटना चाहती है, बंटती है। फिर भी जो कहना है, अनकहा रह जाता है। फिर भी जो बांटना था, बंट नहीं पाता। क्योंकि जो मिलता है निःशब्द में, उसे शब्द में लाना कठिन। जिसका अनुभव होता है निराकार में, उसे आकार देना कठिन। जिसे मौन में साक्षात्कार किया, उसे अभिव्यक्ति बनानी अत्यंत कठिन हो जाती है।
कन्हाई ने प्यार किया कितनी गोपियों को कितनी बार पर उड़ेलते रहे अपना सारा दुलार उस एक रूप पर जिसे कभी पाया नहीं, जो कभी हाथ आया नहीं कभी किसी प्रेयसी में उसी को पा लिया होता तो दुबारा किसी को प्यार क्यों किया होता? कवि ने गीत लिखे नये -नये बार-बार पर उसी एक विषय को देता रहा विस्तार जिसे कभी पूरा पकड़ पाया नहीं जो कभी किसी गीत में समाया नहीं किसी एक गीत मैं वह अट गया दिखता
तो कवि दूसरा गीत ही क्यों लिखता? बुद्ध चालीस-व्यालीस वर्षों तक बोलते रहे-प्रतिदिन, सुबह-सांझ। महावीर चालीस वर्षों तक समझाते रहे, घूमते रहे। कुछ था, जो कहना था। कहने की कोशिश की भरसक, अद्यक कोशिश की, फिर भी पाया कि पूरा अट नहीं पाता है, कुछ छूट जाता है, कुछ पीछे रह जाता है।
रवींद्रनाथ ने मरते वक्त कहा कि 'हे प्रभु, तू समय के पहले उठा ले रहा है। अभी तो मैं अपना साज बिठा पाया था, अभी गीत गया कहां था?' छ: हजार गीत वे गा चुके थे। अभी केवल साज बिठाया था। अभी तो यह तबला ठोंक-ठाक कर ठीक किया था, वीणा के तार कसे थे -और तूने उठा लिया, उठाने लगा? अभी असली गीत तो अनगाया रह गया है।'
मैंने सुना है, एक वाइसराय लखनऊ के एक नबाब के घर मेहमान था। नवाब ने शास्त्रीय संगीत