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बोल सांसों को मलय वातास दूं लाकर कहां से?
देख चारों ओर फैले
सर्प क्षितिजों पर विषैले
बोल पंखों को खुला आकाश दू लाकर कहा से ?
नाम लहरों ने मिटाए
सब घरौंदे खुद ढहाए
बोल सपनों को नए
रनिवास दूं लाकर कहां से?
पुराने को गौर से तो देखो! कुछ भी नहीं है वहा - राख है। सपने ही हैं और वे भी खंडित । पुराने का सत्य ठीक-ठीक स्पष्ट हो जाए कि वहां कारागृह है, आकाश नहीं है, तुम बंधे हो, मुक्त नहीं हुए तुम्हारे जीवन में जंजीरें पड गई हैं, स्वातंत्र्य नहीं आया। अगर यह तुम्हें साफ हो जाए, पुराना तुम्हें अगर कारागृह की तरह दिखाई पड़ने लगे और ध्यान रखना, जिससे भी जीवन में सार नहीं आए, गृह बन जाता है तो फिर नए के स्वागत की तैयारी हो सकती है। नए के स्वागत की तैयारी तभी हो सकती है जब तुम्हें दिखाई पड़ने लगे कि अब तक जिन मार्गों को मान कर चला, उनसे पहुंचा नहीं, सिर्फ भटका ।
कोल्हू के बैल की तरह लोग हो गए हैं।
मैंने सुना है, एक तर्कशास्त्री एक तेली के घर तेल लेने गया। वह बड़ा हैरान हुआ-तर्कशास्त्री था! उसने देखा कि तेली तेल बेच रहा है और उसकी ठीक पीठ के पीछे कोल्हू चल रहा है; कोई चला नहीं रहा, बैल खुद ही चल रहा है। वह बहुत हैरान हुआ उसने कहा कि तेली भाई, यह मुझे बड़े विस्मय में डालती है बात, क्योंकि बैल तो मारे मारे नहीं चलते, यह तुम धार्मिक बैल कहां से पा गए? ये तो सतयुग में हुआ करती थीं बातें यह कलियुग चल रहा है। और यह सतयुगी बैल तुम्हें कहां से मिल गया? यह अपने आप चल रहा है; न कोई कोड़ा फटकारता है, न कोई पीछे मारता है! उस तेली ने कहा कि यह अपने आप नहीं चल रहा है, चलाया जा रहा है। उसके पीछे तरकीब है। आदमी की बुद्धि क्या नहीं कर सकती !
उस तर्कशास्त्री ने कहा कि मैं जरा तर्क का विद्यार्थी हूं मुझे तुम समझाओ कि क्या मामला है? तो उसने कहा 'देखते हैं बैल के गले में घंटी बांध दी है! बैल चलता रहता है, घंटी बजती रहती है। तो मुझे घंटी सुनाई पड़ती रहती है। जब तक बैल चलता है, घंटी बजती रहती है। जैसे ही घंटी रुकी कि मैं उठा और मैंने बैल को लगाई चोट । तो बैल को यह कभी पता ही नहीं चलता कि पीछे