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चूकने की आदत मत बना लेना। कुछ लोग चूकने की आदत बना लेते हैं, वे पीछे का हिसाब रखते हैं-मृत का; मुर्दो की गणना करते रहते हैं।
जो वक्तव्य मैं अभी दे रहा हूं वही जीवित है। ताजा-ताजा और गर्म-गर्म उसे अपने हृदय में ले लो। जब ठंडा और बासा हो जाए, तब तुम उसे पचा न पाओगे; जब ताजे और गर्म को न पचा पाए तो ठंडे और बासे को कैसे पचाओगे? भूल कर भी उसे खाना मत, अन्यथा बोझ बनेगा, पाचन को खराब करेगा, जीवन को विषाक्त कर सकता है।
तो पहली तो बात, पूर्व में मैंने क्या कहा, पागल उसका हिसाब रखें; या जिनको पागल होना हो, वे उसका हिसाब रखें। मैं तो अपने वक्तव्य के साथ अभी हूं क्षण भर बाद न रहूंगा यह भी जो मैं कह रहा हूं हो सकता है कल इसका खंडन कर दूं क्योंकि मैं कोई विचारक नहीं हूं। मैंने कोई विचार-सरणी तय नहीं कर रखी है कि बस इस सरणी के अनुसार जीऊंगा। मैंने जीवन को पूरा का पूरा सरणी-विहीन छोड़ा है। मेरे जीवन में कोई अनुशासन नहीं है-मात्र स्वतंत्रता है। इसलिए तुम मुझे बांध न सकोगे। तुम मुझसे यह न कह सकोगे :'कल कहा था, आज उससे विपरीत क्यों कह रहे हैं?' मैं कहूंगा'कल भी मैंने अपनी स्वतंत्रता से कहा था, आज भी अपनी स्वतंत्रता से कह रहा हूं। कल वैसा गीत गाने का मन था, आज ऐसा गीत गाने का मन है। और वही-वही रोज-रोज दोहराना उचित र्भा? तो नहीं है-उबाएगा।
तो, मैं तो पानी की धार जैसा हूं।
हेराक्लतु ने कहा है : एक ही नदी में दुबारा नहीं उतर सकते। मुझसे भी तुम्हारा दुबारा मिलना नहीं हो सकता। आज तुम जहां मुझे मिल रहे हो, कल मैं वहां न रहूंगा| और जिन्हें मेरे साथ चलना है उन्हें प्रवाह सीखना पड़ेगा। नहीं तो तुम घिसटोगे। मैं भागा जाता हूं-नदी की धार की तरह सागर की तरफ, तुम घसिटते रहोगे। तुम पीछे का हिसाब करते रहोगे।
मेरा कोई इतिहास नहीं है और इतिहास में मुझे कोई रुचि नहीं है। प्रतिपल जीवन जो कहला दे, कहता हूं। या अगर परमात्मा में भरोसा हो तो प्रतिपल परमात्मा जो कहला दे, सो कहता हूं। यह प्रतिपल होने वाला संवेदन है। यह झरने जैसा है। यह किसी दार्शनिक की प्रणाली नहीं है।
दार्शनिक जीता है एक ढांचे से, एक ढांचा तय कर लेता है; उसके विपरीत फिर कभी नहीं कहता, चाहे जीवन विपरीत हो जाए; वह आंख बंद रखता है। सब बदल जाए, लेकिन वह अपनी दोहराए चला जाता है। वह अपने खिड़की-दरवाजे बंद रखता है कोई नई हवा, सूरज की नई किरण कहीं बदलने को मजबूर न कर दे। वह आंख नहीं खोलता।
दार्शनिक अंधे होते हैं, तो ही संगत हो पाते हैं। अगर आंख है तुम्हारे पास और संवेदनशीलता जीवंत है तो प्रतिपल तुम्हारा उत्तर भिन्न-भिन्न होगा, क्योंकि प्रतिपल सब बदला जा रहा है।
मैं इस बदलती हुई जीवनधारा के साथ ही मुझे मेरे अतीत से कुछ लेना देना नहीं। वर्तमान ही सब कुछ है। इसलिए इस बहाने तुमसे यह कह दूं कि पूर्व में और भी बहुत बातें मैंने कही हैं तुम उसकी चिंता मत करना।