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जहर सरायत हो न सका महफूज रहा यह पेडू गो चंदन के गिर्द हमेशा लिपटे रहे भुजंग।
चंदन के वृक्ष पर सर्प लिपटे हैं, तो भी चंदन विषाक्त नहीं हो गया है।
गो चंदन के गिर्द हमेशा लिपटे रहे भुजंग।
कोई फर्क नहीं पड़ता। आत्मा अदृश्य है, शरीर दृश्य है, मन भी दृश्य है। दृश्य अदृश्य को छू भी नहीं सकता। लिपटे रहे भुजंग! आत्मा इनसे कलुषित नहीं होती है। आत्मा कलुषित हो ही नहीं सकती है। आत्मा का होना ही शुद्ध बुद्धता है। लाख तुमने पाप किए हों, तुम्हारी भांति इसमें है कि तुमने किए। और पाप के कारण तुम पापी नहीं हो गए हो। कितने ही पाप किए हों, तुम पापी हो नहीं सकते, क्योंकि पापी होने की संभावना ही नहीं है। तुम्हारा अंतस्तम, तुम्हारा आंतरिक स्तल सदा शुद्ध है।
जैसे कि दर्पण के सामने कोई हत्यारे को ले आए, तो दर्पण हत्यारा नहीं हो जाता । दर्पण के सामने ही हत्या की जाए, तो भी दर्पण हत्यारा नहीं हो जाता । दर्पण के सामने ही खून गिरे, तो भी दर्पण पर हत्या का जुर्म नहीं है। जो भी हुआ है, शरीर और मन में हुआ है। इन दोनों के पार तुम्हारा होना अतीत है, अतिक्रमण करता है। न वहा कोई तरंग कभी पहुंची है न पहुंच सकती है
'ऐसा जान कर मैं स्थित हूं!'
हम तो जो दृश्य है, उससे उलझ गए हैं और द्रष्टा को भूल गए हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात जूते खरीदने बाजार गया। एक साहब जूता खरीद रहे थे, वह भी उनके पास ही बैठ गया। अनेक जूते लाए गए। वे साहब जूता खरीद कर चले गए दूसरे साहब आए, वे भी जूता खरीद कर चले गए तीसरे आए.......। लेकिन मुल्ला ने पचासों जोड़ियां देखीं लेकिन कोई जोड़ी उसके पैर आई नहीं । दूकानदार भी थक गया और दूकान बंद होने का वक्त भी आ गया। लेकिन कोई जूता फिट ही नहीं बैठ रहा था। इतने में बिजली चली गई। पूना है, जानते ही आप, बिजली चली जाती है! इतने में बिजली चली गई। और तभी मुल्ला बड़े जोर से चिल्लाया : अरे आ गया, आ गया, फिट आ गया ! दूकानदार भी बड़ा खुश हुआ कि चलो आशा नहीं थी कि यह आदमी कुछ खरीदेगा, कि खरीद पाएगा। लेकिन जब रोशनी वापिस आई तो देखा कि मुल्ला पैर एक जूते के डब्बे में रखे बैठा है।
जब रोशनी आएगी, तब तुम पाओगे कि कहां तुम पैर रखे बैठे हो! शरीर में अदृश्य दृश्य के साथ बंधा बैठा है। मन में निस्तरंग तरंगों के साथ बंधा बैठा है। जब रोशनी आएगी, तब जागोगे और जानोगे।
रोशनी कैसे आएगी? ये सूत्र रोशनी के लिए ही हैं।
'अध्यास आदि के कारण विक्षेप होने पर समाधि का व्यवहार होता है। ऐसे नियम को देख कर समाधि-रहित मैं स्थित हूं।'
इसलिए मैंने कहा, ये बड़े क्रांतिकारी सूत्र हैं।