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मजे से चलता रहता है। सच तो यह है कि चिकित्सक कहते हैं कि तुम्हारे कारण बाधा पड़ती है। इसलिए अगर कोई मरीज सो न सके तो बीमारी ठीक होनी मुश्किल हो जाती है, क्योंकि वह बाधा डालता है। सो जाता है तो बाधा बंद हो जाती है, शरीर अपने को रास्ते पर ले आता है; बीच का उपद्रव हट जाता है, यह हस्तक्षेप हट जाता है।
इसलिए नींद हजारों दवाओं की दवा है। क्योंकि नींद में तुम तो खो गये शरीर को जो करना है वह स्वतंत्रता से कर लेता है, तुम बीच-बीच में नहीं आते।
जनक कह रहे हैं: शरीर तो अपने से चलता है, अब तक मेरी भ्रांति थी कि मैं चलाता हूं।
जरा इस बात को समझो। अगर यह तुम्हें खयाल आ जाए कि शरीर अपने से चलता है, तो तुम शरीर में रहते हुए इस शरीर से मुक्त हो गए शरीर ने तुमको नहीं बांधा है; यह भांति तुम्हें बांधे हुए है कि तुम शरीर को चलाते हो शरीर का कृत्य प्राकृतिक है और वैसा ही कृत्य मन का है, वैसा ही कृत्य शब्द का है।
बुद्ध ने कहा है अपने भिक्षुओं को कि तुम मन के चलते विचारों को ऐसे ही देखो जैसे कोई राह के किनारे बैठ कर रास्ते को देखता है-लोग आते-जाते, राह चलती रहती है। ऐसे ही तुम अपने मन में चलते विचारों को देखो। इन विचारों को तुम यह मत समझो कि तुम चला रहे हो, या कि तुम इन्हें रोक सकते हो। जिसको यह भ्रांति है कि मैं विचारों को चला रहा हूं उसको एक न एक दिन दूसरी भ्रांति भी होगी कि मैं चाहूं तो रोक सकता हूं। तुम कोशिश करके देख लो।
तिब्बत में कथा है कि एक युवक धर्म की खोज में था। वह एक गुरु के पास गया। गुरु के बहुत पैर दबाए, सेवा की वर्षों तक-और एक ही बात पूछता था कि कोई महामंत्र दे दो कि सिद्धि हो जाए, शक्ति मिल जाए। आखिर गुरु उससे थक गया। गुरु ने कहा: तो फिर ले! इसमें एक कठिनाई है, वह मुझे कहनी पड़ेगी। उसी के कारण मैं भी सिद्ध नहीं कर पाया। मेरे गुरु ने भी मुझे बामुश्किल दिया था। मैं तो तीस साल सेवा किया, तब दिया था; मैं तुझे तीन साल में दे रहा हूं। तू धन्यभागी! मगर सफल मैं भी नहीं हुआ क्योंकि इसमें एक बड़ी बेढंगी शर्त है।
उस युवक ने कहा: तुम कहो तो! मैं सब कर लूंगा। सारा जीवन लगा दूंगा।
गुरु ने कहा यह मंत्र है, छोटा-सा मंत्र है। इस मंत्र को तू दोहराना, बस, पांच बार दोहराना, कोई ज्यादा मेहनत नहीं। लेकिन जितनी देर यह दोहराए, उतनी देर बंदर का स्मरण न आए।
उसने कहा: हद हो गई! कभी बंदर का स्मरण आया ही नहीं जीवन में, अब क्यों आएगा! जल्दी से मंत्र दो!
मंत्र तो तिब्बतियों का बड़ा सीधा-सादा है। दे दिया। मंत्र लेकर वह उतरा सीढ़ी मंदिर की, लेकिन बडा घबड़ाया। अभी सीढ़ियां भी नहीं उतर पाया कि बंदर उसके मन में झांकने लगे। इस तरफ, उस तरफ बंदर चेहरा बनाने लगे। वह बहुत घबड़ाया कि यह मामला क्या है? यह मंत्र कैसा? घर पहुंचा नहीं कि बंदरों की भीड़ उसके साथ पहुंची मन में ही सब! नहा-धो कर बैठा, लेकिन बड़ी मुश्किल! नहा - धो रहा है कि बंदर हैं कि खिलखिला रहे हैं, जीभ बता रहे हैं, मुंह बिचका रहे हैं। उसने सोचा,