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जिन्ना को भी मार सकते हैं। उसके बाद जिन्ना के चेहरे पर वह प्रसन्नता कभी नहीं रही जो सदा थी। दुश्मन मर गया। गांधी के मरते ही जिन्ना भी मर गए। कुछ खो गया।
तुम्हारा दुश्मन भी तुम्हारा संबंध है। मित्र से तो खोला ही कुछ, शत्रु से भी खो जाता है।
तो एक तो राग का संबंध है संसार से. फिर एक विराग का संबंध है। कोई धन के लिए दीवाना है, कोई धन से डरा हुआ है और भागा हुआ है किसी के मन में बस चांदी के सिक्के ही तैरते हैं,
और कोई इतना डरा है कि अगर रुपया उसे दिखा दो तो वह कंपने लगता है। संन्यासी हैं जो रुपये को नहीं छूते।
मैं एक संन्यासी के पास मेहमान हुआ वे रुपये को नहीं छूते। मैंने उनसे पूछा कि रुपये को नहीं छूते? वे बोले, मिट्टी है! मैंने कहा, मिट्टी को तो तुम छूते हो। अगर सच में ही मिट्टी है तो रुपये को छूते क्यों नहीं? मिट्टी के साथ तो तुम्हें कोई एतराज मैंने देखा नहीं!
वे जरा बेचैन हुए उनके शिष्य भी बैठे थे। वे जरा बड़ी परेशानी में पड़े कि अब क्या कहें? क्योंकि मिट्टी को छुए बिना तो चलेगा नहीं। मैंने कहा, बोलो! अगर सच में मिट्टी है...... :लेकिन मुझे शक है कि अभी रुपया मिट्टी हुआ नहीं। अभी रुपये में राग की जगह विराग आ गया। संबंध पहले मित्र का था, अब शत्रु का हो गया। तो तुम शीर्षासन करने लगे, उल्टे खड़े हो गए लेकिन तुम आदमी वही के वही हो।
एक और संन्यासी के पास एक बार मैं मेहमान हुआ। वे एक बड़े मंच पर बैठे थे। उनके पास ही एक छोटा मंच था, उस पर एक दूसरे संन्यासी बैठे थे। वे मुझसे कहने लगे क्या आप जानते हैं इस छोटे मंच पर कौन बैठा है?
मैंने कहा, मैं तो नहीं जानता। मैं पहली दफे यहां आपके निमंत्रण पर आया हूं।
कहने लगे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे। मगर बड़े विनम्र आदमी हैं! देखो मेरे साथ तख्त पर भी नहीं बैठते। छोटा तख्त बनवाया है।
मैंने उनसे कहा कि आपको यह याद रखने की आवश्यकता क्या है कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे? और जहां तक मैं देख रहा हूं इन सज्जन को, ये प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब आप लुटूको और ये चढ़ बैठें। माना कि आपसे इन्होंने छोटा तख्त बनाया लेकिन इनसे भी नीचे दूसरे बैठे हैं: उनसे तो इन्होंने थोड़ा ऊंचा बनाया ही। और जिस ढंग से ये बैठे हैं, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि रास्ता देख रहे हैं। सीढ़ी बना ली है इन्होंने। आधे में आ गए हैं, बाकी सब पीछे हैं आपके शिष्य। आपके लुढ़कते ही ये ऊपर बैठेंगे। फिर आपको भी यह खयाल है कि ये चीफ जस्टिस थे? चीफ जस्टिस का क्या मूल्य है? राग तो छूट गया, लेकिन ऐसे ही नहीं छूट जाता; सूक्ष्म, धूमिल रेखाएं छोड़ जाता है। कहते हो विनम्र हैं, लेकिन अगर विनम्र ही हैं तो यह छोटा तख्त भी क्यों? और अगर तख्त से ही विनम्रता का पता चलता है, तो इनसे कहो कि गड्डा खोद लें, उसमें बैठे।
यह विनम्रता अहंकार का ही एक रूप है। यह थोथी है और झूठी है; और कहती कुछ है, है कुछ और। रागी, विरागी हो जाता है, विपरीत भाषा बोलने लगता है।