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देखा तो संसार देखा और जागे हुए आदमी ने जब संसार देखा तो परमात्मा को देखा।
जागा हुआ आदमी कहता है संसार नहीं है, परमात्मा है। सोया हुआ आदमी कहता है : कहां है परमात्मा? संसार ही संसार है।
ये दो दृष्टियां हैं; सत्य तो एक है। दो पाठ, एक ही काव्य!
आखिरी प्रश्न :
मुझे लगता है कि मैं आपको चूक रहा हूं। यह समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं कि आपको न चूक। आप गहन से गहन होते जा रहे हैं और मैं पाता हूं कि मैं इस गहनता के लिए तैयार नहीं हूं। क्या मैं ऐसे ही हाथ मलता रह जाऊंगा?
। न चूकने की भाषा ही लोभ की भाषा है। लोभ छोड़ो। मेरे साथ उत्सव में सम्मिलित
रहो। 'चूक जाऊंगा-इसका मतलब हुआ कि तुम लोभ की भाषा से देख रहे हो| सब सम्हाल लूं सब मिल जाए, सब पर मुट्ठी बांध लूं सब मेरी तिजोरी में हो जाए धन भी हो वहां, ध्यान भी हो वहां; संसार भी हो, परमात्मा भी हो-ऐसा लोभ तुमने अगर रखा तो निश्चित चूक जाओगे| चूकोगे-लोभ के कारण। यह चूकने न चूकने की भाषा छोड़ो।
यहां मैं तुम्हें कुछ दे नहीं रहा हूं। यहां मैं तुमसे कुछ छीन रहा हूं। और यहां मैं तुम्हें कुछ ज्ञान देने नहीं बैठा ह। तम मेरे साथ उत्सव में थोड़ी देर सम्मिलित हो जाओ, मेरे साथ गुनगुना लो। तुम थोड़ी दूर मेरे साथ चलो। दो कदम मेरे साथ चल लो, बस इतना काफी है।
तुम्हें एक दफा स्वाद लग जाए परम का, फिर कोई भय नहीं है। फिर मैं यहां रहूं न रहूं कोई चिंता नहीं है। मेरे रहते तुम्हें थोड़ा-सा स्वाद लग जाए।
तो तुम यह चूकने, खोने इत्यादि की बातें छोड़ो। इनमें तुम उलझे रहे तो तुम मेरे उत्सव में सम्मिलित न हो पाओगे। चाह तो ठीक है, लेकिन लोभ से जुड़ी है, इसलिए गलत हुई जा रही है। चाहती किरणें धरा पर फैल जाना
चाहती कलिया चटख कर महमहाना फूल से हर डाल सजना चाहती है प्राण की यह बीन बजना चाहती है। चाहती चिड़िया वसती गीत गाना पत्तियां संदेश मधु ऋतु का सूनाना वायु ऋतुपति नाम भजना चाहती है