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प्राण की यह बीन बजना चाहती है। ठीक है, भाव तो बिलकुल ठीक है। सिर्फ लोभ की दृष्टि से उसे मुक्त कर लो।
इसी क्षण मैं यहां हूं तुम भी मेरे साथ रहो। यह हिसाब-किताब मन में मत बांधो कि सम्हाल लूं यह पकड़ लूं यह पकडूं न पकडु यह समझ में आया कि नहीं आया छोड़ो, समझ इत्यादि का कोई सवाल नहीं है। उत्सव, महोत्सव में सम्मिलित हो जाओ! तुम मेरे साथ सिर्फ बैठो। तुम सिर्फ मेरे साथ हो रहो, सत्संग होने दो! थोड़ी देर को तुम मिट जाओ। यहां तो मैं नहीं हूं, अगर वहां तुम थोड़ी देर को मिट जाओ......| वह लोभ न मिटने देगा। वह लोभ खड़ा रहेगा कि कैसे पकड़ कैसे इकट्ठा करूं। थोड़ी देर को तुम मिट जाओ! तुम कोरे और शून्य हो जाओ। उसी क्षण जो भी मैं हूं उसका स्वाद तुम्हें लग जाएगा। और वह स्वाद तुम्हारे ही भविष्य का स्वाद है।
पूरी धरती पर फैला ली बांहें इन बांहों में आकाश नहीं आया हर परिचय को आवाज लगा ली है सुन कर भी कोई पास नहीं आया
मील के पत्थर लगे हैं, किंतु अक्षर मिट गए कौन से पूछे कि अपना गांव कितनी दूर है! मील के पत्थर लगे हैं, किंतु अक्षर मिट गए कौन से पूछे कि अपना गांव कितनी दूर है! भोर होते ही चले थे, अब दुपहरी हो रही कौन से पूछे कि शीतल छाव कितनी दूर है! धूल मस्तक से लगा मिलती दिशा गंतव्य की
कौन से पूछे कि पावन पांव कितनी दूर हैं! मैं यहां मौजूद हूं। तुम्हें किसी से पूछने की कोई जरूरत नहीं है। मुझसे भी पूछने की कोई जरूरत नहीं है। सिर्फ मेरे साथ क्षण भर को गुनगुना लो। मेरे अस्तित्व के साथ थोड़ी देर को रास रचा लो। नहीं चूकोगे। लेकिन अगर चूकने न चूकने की भाषा में उलझे रहे, तो चूक रहे हो, चूकते रहे हो और निश्चित ही चूक जाने वाले हो।
हरि ओम तत्सत्।