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तुम्हारा यह कहना ही कि हम करें ही क्यों? यही बताता है कि तुम्हें अभी भी यह खयाल है कि तुम कर्ता हो। पहले तुम करते थे, अब तुम नहीं करते हो, लेकिन कर्ता हो, यह खयाल तो तुम्हारा मजबूत अभी भी है। तुम कहते हो, अब हम क्यों करें? जैसे कि अब तक तुम करते थे! भ्रांति अभी भी कायम है। जो समझेगा वह कहेगा, करना न करना अपने हाथ में नहीं है; जो होगा, होगा। हम बाधा न डालेंगे। हम साथ हो लेंगे। हम उसकी लहर के साथ बहेंगे।
फिर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति ठीक मध्य में होता है, जिसके भीतर पुरुषार्थ और भाग्य संतुलित होते हैं। ऐसा व्यक्ति अगर सदगुरु के पास आए तो वह उससे कहेगा : दोनों ही ठीक हैं; पुरुषार्थ भी ठीक है, भाग्य भी ठीक है। क्योंकि यह व्यक्ति संतुलित है। इससे कहना कि पुरुषार्थ ठीक नहीं, इसका संतुलन तोड़ना है। इससे कहना कि भाग्य ठीक है, इसका संतुलन तोड़ना है। यह संतुलित हो ही रहा है।
एक आदमी ने बुद्ध से पूछा, ईश्वर है? बुद्ध ने कहा: नहीं। उसी दिन दूसरे आदमी ने पूछा, ईश्वर है? बुद्ध ने कहा: निश्चय ही। और उसी सांझ एक तीसरे आदमी ने पूछा और बुद्ध चुप रह गए। रात आनंद उनसे पूछने लगा: मुझे पागल कर दोगे क्या? क्योंकि आनंद तीनों मौकों पर मौजूद था। उसने कहा : मैं आज सो न सकूँगा, आप मुझे समझा दें। यह बात निपटारा ही कर दें। ईश्वर है या नहीं? सुबह आपने कहा, नहीं है। मैंने कहा, चलो ठीक, कोई बात नहीं, उत्तर एक साफ हो गया। दोपहर होते-होते आप बदल गए। कहने लगे, है। सांझ चुप रह गए।
बुद्ध ने कहा: उनमें से कोई भी उत्तर तेरे लिए नहीं दिया था, तूने लिया क्यों? ऐसे बीच-बीच में झपटोगे तो झंझट में पड़ोगे। जो मेरे पास आया था पहले से ही भाव लिए कि ईश्वर नहीं है, उससे मैंने कहा, है। उसे उसकी स्थिति से हटाना जरूरी था। वह नास्तिक था। उसकी नास्तिकता को डावांडोल करना जरूरी था। उसकी यात्रा बंद हो गई थी। वह मान कर ही बैठ गया था कि ईश्वर नहीं है। बिना जाने मान कर बैठ गया था, ईश्वर नहीं है। बिना कहीं गए मानकर बैठ गया था कि ईश्वर नहीं है। उसको धक्का देना जरूरी था। उसकी जड़ों को हिलाना जरूरी था। उसे राह पर लगाना जरूरी था। तो मैंने कहा कि ईश्वर, ईश्वर है।
वह जो दूसरा आदमी आया था, वह मान कर बैठ गया था, ईश्वर है। बिना खोजे, बिना आविष्कार किए, बिना चेष्टा, बिना साधना, बिना श्रम, बिना ध्यान, बिना मनन, बस मान कर बैठ गया था उधार कि ईश्वर है। उसे भी डगमगाना जरूरी था। उसकी श्रद्धा झूठी थी, उधार थी। उससे मुझे कहना पड़ा, ईश्वर नहीं है।
और जो तीसरा आदमी सांझ आया था, उसकी कोई धारणा न थी, कोई विश्वास न था, वह परम खोजी था। उससे कुछ भी कहना खतरनाक है। कोई भी धारणा उसके भीतर डालनी उसके मन को विकृत करना है, इसलिए मैं चुप रह गया। मैंने उससे कहा मौन उत्तर है। और वह समझ गया।
और बुद्ध ने कहा : कुछ घोड़े होते हैं, उनको मारो तो बामुश्किल चलते हैं। कुछ घोड़े होते हैं, उनको सिर्फ कोड़ा फटकासे, चलने लगते हैं। कुछ घोड़े होते हैं, सिर्फ कोड़ा देख लेते हैं, फटकारने की जरूरत