________________
तुम्हें लगता है कि कीचड़ में, बदबू में पड़ा है। मुंह में कीचड़ चली जा रही है। नाक के पास नाली बह रही है। बड़ी दुर्गंध इसे आती होगी। लेकिन वह बेहोश पड़ा है। दुर्गंध वगैरह आने के लिए थोड़ा होश चाहिए। हां, सुबह जब आंख खुलेगी उसकी और होश आएगा, तो झाड-झकाइ कर भागेगा घर; स्नान- ध्यान करके, चंदन-मंदन लगा कर, पूजा-पाठ करके तैयार हो कर बैठकखाने में बैठ जाएगा। तब तुम उससे कहो कि जरा नाली में चल कर लेट जाओ, असंभव हो जाएगा। क्योंकि अब सब इंद्रियां सजग होंगी।
___ ऐसी ही घटना घटती है। जैसे-जैसे सजगता बढ़ती है, तुम्हारे जीवन की बहुत-सी नालियां जिनको तुम अब तक स्वर्ग समझ कर जी रहे थे, दुर्गंधयुक्त हो जाती हैं। बहुत से सुख जिन्हें तुम अब तक सुख समझते थे, दुख जैसे मालूम होने लगते हैं, चुभने लगते हैं। इसलिए सजगता बढ़ने
थ एक उपद्रव बढ़ता है। वह उपद्रव है कि आदमी बहुत संवेदनशील, कोमल हो जाता है। एक गहन कोमलता उसे घेर लेती है।
लेकिन यह मार्ग पर ही है बात। जैसे -जैसे सजगता परिपूर्णता पर पहुंचती है पहले आदमी की जड़ता टूटती है, संवेदनशीलता बढ़ती है। फिर एक ऐसी घड़ी आती है-सजगता की आखिरी छलांग-जब जाग इतनी गहन हो जाती है कि शरीर और मन दूर हो जाते हैं। फिर कोई संवेदनशीलता कष्ट नहीं देती, दुख नहीं देती। बोध तो होता है। अगर बुद्ध को काटा लगेगा तो तुमसे ज्यादा बोध होता है। क्योंकि बुद्ध का बोध प्रगाढ़ है। तुम्हारा बोध तो कुछ भी नहीं है।
देखा कभी हाकी के मैदान पर खेलते-खेलते खिलाड़ी के पैर में चोट लग गई, खून बह रहा है, मगर वह खेलता चला जाता है! उसे पता नहीं। सब देखने वालों को दिखाई पड़ रहा है कि पैर से खून बह रहा है, खून की कतार बन गई है मैदान पर। उसे पता नहीं है। वह खेल में मस्त है, बेहोश है। होश कहां उसे अपने शरीर का! जैसे ही खेल बंद होगा, रेफरी की सीटी बजेगी, तत्क्षण दुख होगा, दर्द होगा, बैठ जाएगा पैर पकड़ कर। कहेगा कि हाय, पता नहीं कब से चोट लगी है! अब उसे दुख होगा। इतनी देर भी दुख तो था, लेकिन बोध नहीं था।
तो पहली दफा जब तुम्हारे जीवन में ध्यान आएगा तो बहुत-सा बोध आएगा। उस बोध के साथ-साथ जो-जो गलत तुम अब तक कर रहे थे, उस सबकी संवेदनशीलता आएगी। जरा-सा तुम क्रोध करोगे और तुम्हारे प्राण कैप जाएंगे। जरा-सी तुम ईर्ष्या करोगे और जहर फैल जाएगा। जरा-सी तुम घृणा करोगे और तुम अनुभव करोगे जैसे अपनी ही छाती में छुरा भोंक लिया तो कठिन होगा। लेकिन इस कठिनाई से भागना मत और घबराना मत।
हृदय छोटा हो तो शोक वहां नहीं समाएगा।
और दर्द दस्तक दिये बिना दरवाजे से लौट जाएगा। टीस उसे उठती है जिसका भाग्य खुलता है। वेदना गोद में उठा कर सबको निहाल नहीं करती। जिसका पुण्य प्रबल होता है, वही अपने आंसुओ से धुलता है।