Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
विषय
[ ७० ]
शरीरके आवश्यक कार्य को छोड़ कर अन्य सभी कार्यों को छोडे ।
२५ तेरहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २६ वह मुनि दुर्वादि हरितकायोंसे युक्त स्थानों पर नहीं बैठे, हरितकायरहित स्थानपर शयन करे, आहार छोडकर चुपचाप सभी परीषहोपसर्गों को सहे ।
२७ चौदहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २८ इन्द्रियोंकी शक्ति क्षीण हो जाने पर यदि ग्लानिका अनुभव होने लगे तो मुनि साम्यभावको धारण करे, वह मुनि पर्वतके समान अचल और समाहितचित्त होवे । इस प्रकारका सर्वदा अनिन्द्य होता है ।
२९ पन्द्रहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ३० वह मुनि उस इङ्गितमरणमें शरीर में पीडा होने पर उस क्षेत्र के अन्दरमें अर्थात् मर्यादित भूमिमें इधर-उधर भ्रमण करे, अथवा शुष्क काष्ठके समान निश्चल रहे ।
३१ सोलहवीं गाथाका अवतरण गाथा और छाया ।
"
३२ इङ्गितमरणमें मुनिके शरीरमें जब पीडा होवे तो उसे जो करना चाहिये उसका कथन ।
३३ सत्रहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
३४ इस इङ्गित मरणको स्वीकार करनेवाला मुनि अपनी इन्द्रियों को विषयोंसे निवृत्त करे, वह प्रतिलेखनयोग्य पीठ - फलाfaar अन्वेषण करे |
३५
अठारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ३६ प्रतिलेखनके अयोग्य पीठफलकादिके ग्रहण से ज्ञानावर - यादि कर्मों का बन्ध होता है, अतः ऐसे पीठफलादिकका
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
पृष्ठाङ्क
५१३-५१४
५१४
५१४-५१५
५१५
५१६
५१६
५१७
५१७
५१८
५१९
५१९-५२०
५२०