Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
१३ सातवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १४ मुनि ग्राम अथवा अरण्यमें प्राणिवर्जित स्थण्डिलका प्रतिलेखन करके वहां पर दर्भका संथारा बिछावे |
१५ आठवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १६ मुनि आहारको छोड़ कर उस दर्भसंथाराके ऊपर शयन करे, अनुकूल प्रतिकूल सभी परिषहोंको सहे ।
१७ नवमी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १८ उस शय्या पर उस मुनिके मांसशोणितको कीडियां और आदि पक्षी खावें तो उनकी हिंसा न करे और न क्षतस्थानका प्रमार्जन ही करे ।
१९ दशवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
२० साधु यह विचार करे कि ये प्राणी मेरे शरीरकी हिंसा करते हैं नत्रयकी तो नहीं करते। ऐसा विचार कर वह उन्हें निवारित न करे | अपनी शय्यासे कभी दूर न जाय और परीषहोपसका सहन करे ।
२१ ग्यारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया
२२ बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थ से रहित अपनी आत्माको भावित करते हुए मुनि अन्तिम श्वासोच्छ्वासपर्यन्त समाधियुक्त रहे । इस प्रकारका मुनि कर्मके निश्शेष होने पर मोक्षगामी होता है और यदि कर्म अवशिष्ट रह जाता है तो देवलोकगामी होता है । गीतार्थ संयमी इस इङ्गित मरणको सम्यक् प्रकारसे स्वीकृत करता है ।
२३ बारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
२४ यह इङ्गितमरणरूप धर्म भगवान् महावीरने कहा है, यह मरण भक्तपरिज्ञामरण से भिन्न है । इस मरणका अभिलाषी मुनि
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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