Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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॥ अथ अष्टम उद्देश॥
विषय
५००
पृष्टाङ्क १ अष्टम उद्देशका सप्तम उद्देशके साथ सम्बन्धपतिपादन,
प्रथम गाथा और उसकी छाया । बुद्धिमान् धीर मुनि क्रमशः भक्तपरिज्ञा, इङ्गितमरण और पादपोपगमनरूप विमोहको प्राप्त कर, उस भक्तपरिज्ञानादिक के औचित्य अनौचित्यको विचार कर समाधिका परिपालन करे।
५०१-५०२ ३ द्वितीय गाथाका अवतरण, द्वितीय गाथा और छाया। ५०२ ४ मुनि बाह्य और आभ्यन्तर तपका सेवन कर, शरीरके अशक्त
हो जाने पर भक्तप्रत्याख्यान आदिमें से किसी एकको
स्वीकार कर आहारादिकी गवेषणासे निवृत्त हो जाता है। ५०२-५०३ ५ तृतीय गाथाका अवतरण, तृतीय गाथा और छाया। ५०३ ६ वह भिक्षु अल्पाहारी होता है, कषायादिको कृश करके
दूसरोंके दुर्वचनोंको सह लेता है । यदि उस भिक्षुको आहार
न मिले तो वह आहारका परित्याग कर देता है । ५०४-५०५ ७ चतुर्थ गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। ८ संलेखना करनेवाले मुनिको जीवन-मरणको अभिलाषासे
रहित होना चाहिये। ९ पांचवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया ।
५०६ संलेखनाकारी मुनि निर्जराकी अपेक्षा रखता हुआ मध्यस्थ हो कर समाधिकी परिपालना करे, और कपाय एवं शारी
रिक उपकरणों को छोड कर अन्तःकरणको शुद्ध करे। ५०६-५०७ ११ छठी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। १२ अपनी आयुके उपक्रमको जान कर मुनि संलेखनाकालके बीचमें ही भक्तमत्याख्यान करे ।
५०७-५०८
५०५
५०७
श्री. साया
सूत्र : 3