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________________ [६९] विषय १३ सातवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १४ मुनि ग्राम अथवा अरण्यमें प्राणिवर्जित स्थण्डिलका प्रतिलेखन करके वहां पर दर्भका संथारा बिछावे | १५ आठवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १६ मुनि आहारको छोड़ कर उस दर्भसंथाराके ऊपर शयन करे, अनुकूल प्रतिकूल सभी परिषहोंको सहे । १७ नवमी गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । १८ उस शय्या पर उस मुनिके मांसशोणितको कीडियां और आदि पक्षी खावें तो उनकी हिंसा न करे और न क्षतस्थानका प्रमार्जन ही करे । १९ दशवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २० साधु यह विचार करे कि ये प्राणी मेरे शरीरकी हिंसा करते हैं नत्रयकी तो नहीं करते। ऐसा विचार कर वह उन्हें निवारित न करे | अपनी शय्यासे कभी दूर न जाय और परीषहोपसका सहन करे । २१ ग्यारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया २२ बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थ से रहित अपनी आत्माको भावित करते हुए मुनि अन्तिम श्वासोच्छ्वासपर्यन्त समाधियुक्त रहे । इस प्रकारका मुनि कर्मके निश्शेष होने पर मोक्षगामी होता है और यदि कर्म अवशिष्ट रह जाता है तो देवलोकगामी होता है । गीतार्थ संयमी इस इङ्गित मरणको सम्यक् प्रकारसे स्वीकृत करता है । २३ बारहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । २४ यह इङ्गितमरणरूप धर्म भगवान् महावीरने कहा है, यह मरण भक्तपरिज्ञामरण से भिन्न है । इस मरणका अभिलाषी मुनि શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ पृष्ठाङ्क ५०८ ५०८ ५०९ ५०९-५१० ५१० ५१० ५११ ५११ ५१२ ५१२-५१३ ५१३
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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