Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद ]
[ ३१ मेधावी प्रतिभाषतो गुणपरो श्रीमान् शीलं पट: । भावज्ञो गुणदोषे निपुणता संगीत वाद्यादिषु । मध्यस्थो मृदुवाक्य धीर हृदयाः तत्पण्डितो सात्विका ।
भाषा भेद सुलक्षणा सुकाविभिः प्रोक्ता श्रुते मंत्रिणा ।। अर्थात् श्रेष्ठ मंत्री में निम्नलिखित गुणों का सनिवेश होना चाहिये (1) मेधावो विवेकवान बिहान होना, (2) गृगवान होना ! 3) सभी भाषाओं का जानकार होना (4) श्रीमान्–ऐश्वर्यवान् शीलव्रतधारी, सदाचारी होना (५) गुण दोषों की पहचान में निपुरण होना (६) संगीत वाद्य आदि कलाओं का भी जानकार होना (७) मध्यस्थ साम्यभावी होना (८) मृदुभाषी धैर्यशील और पंडित होना चाहिये ।
सप्ताङ्ग राज्य में तीसरा भेद सुहृद् है । सुहृद् का अर्थ मित्र है। जो उत्तम पवित्र हृदय वाला हो वह मुहृद् कहलाता है । कहा भी है
पापानिवारयति योजयते हिताय, गुह्य निगुह्यति गुणान् प्रकटी करोति ।
आपद्गतं न जहाति ददाति काले, सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ।।
अर्थ ---जो पाप से छड़ाकर आत्महित में लगाने वाला हो तथा गुप्त बातों को या दोष आदि को छिपाकर गुणों को प्रकट करने वाला हो, विपत्तिकाल में साथ नहीं छोड़ता है वही सच्चा मित्र है।
कोष–राज्य की विशिष्ट धन सम्पत्ति जहाँ रखी जाती है बह कोष है।
दुर्ग-- शत्रु की सुरक्षा के लिये जो ऊँचे कोट युक्त दीवालों से घिरा हुआ स्थान हो उसे दुर्ग कहते हैं । यह सप्ताङ्ग राज्य का पांचवा भेद है ।
देश-जनपदों का वह निवासस्थान जो अनेक नामों और नगरों से सहित है उसे देश कहते हैं । यह छठा भेद है।
बल या सेना—जिसके बल से राजा शत्रुओं को जीतता है वह सेना कहलाती है यह सातवाँ भेद है । राजा श्रेणिक का सप्ताङ्ग राज्य भी इसी प्रकार का था।
सन्धिविग्रहयानाख्यमासनं संश्रयस्तथा ।
द्वैधीभावः षडेते च प्रोक्ता राज्याङ्गता बुधैः ।।७३।। अन्वयार्थ (बुधैः) विद्वानों के द्वारा (सन्धिविग्रहयान) सन्धि करना, विग्रह करना, यान रखना (आसन) आसन योग्य स्थान (संश्रयः) आधयप्रदान (च) और (तथा) उसी प्रकार से (द्वैधी भावः) द्वैधी भाव-दो के बीच विरोध करना (एते) ये (पड्) छः (राज्याङ्गता) राज्य के अङ्ग (प्रोक्ता) कहे गये हैं।
मावार्थ ---राजागण अपने राज्य की स्थिति, वृद्धि और समृद्धि के लिये छः प्रकार के प्रयोग करते हैं । ये ही राज्य के षडान कहे जाते हैं । इनका स्वरूप निम्न प्रकार है