Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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०२८॥
पुराण | ही क्षेत्र कालादिक का बरणन सुन फिर और महा पुरुषों का चरित्र जो पाप का विनाशने हारा है सुनो।
लोकालोक, कालचक्र, कुलकर नाभि राजा, और श्री ऋषभदेव और भरत का वर्णन गौतम स्वामी कहे हैं कि हे राजा श्रेणिक अनन्त प्रदेशी जो अलोकाकाश उसके मध्य तीन बात बलों से वेष्टित तीनलोक तिष्ठे हैं तीनलोक के मध्य यह मध्य लोक है इस में असंख्यात द्वीप और समुद्र । हैं उनके बीच लवण समुद्रकरखेढ़ा लक्ष योजन प्रमाण यह जम्बूद्वीप है, उसके मध्य सुमेरु पर्वतहै वह मूल में बज्र मणि मई है ओर ऊपर समस्त सुवर्ण मई है अनेक रत्नों से संयुक्त है संध्या समय रक्तताको धरे । है मेघों के समूह के समान सुरङ्ग ऊंचा शिखर है शिखर के और सौधर्म स्वर्ग के बीच में एक बालकी अणी का अन्तर है सुमेरु पर्वत निन्यानवें हजार योजन ऊंचा है और एक हजार योजन कन्द है और पृथिवी पर तो दश हजार योजन चौड़ा है और शिखर पर एक हजार योजन चौड़ाहै मानो मध्यलोक के नापने का दण्डही है जम्बद्धीप में एक देव कुरु एक उत्तर कुरु हैं और भरतश्रादि सप्त क्षेत्र हैं षट्कुलाचलों से जिनका बिभाग है जम्बू और शालमली यह दोय वृक्ष है जम्बदीप में चौंतीस विजियाध पर्वत हैं एक एक विजिया में एकसौ दश विद्याधरों की नगरी हैं एक एक नगरी को कोटि २ ग्राम लगे हैं, ओर जम्बू द्वीप में बत्तीस विदेह एक भरत एक ऐरावत यह चौंतीस क्षेत्र हैं एक एक क्षेत्र में एक एक राजधानी है, और जम्बद्धीप में गङ्गा आदिक १४ महानदी हैं और छह भोग भमिहें एक एकविजियार्घ पर्वत में दोय दोय गुफा हैं सो चौंतीस विजिया में अड़सठ गुफाहें षट्कुलाचलोंमें और विजियाध पर्वतोंमें तथा वक्षार पर्वतों में सर्वत्र भगवान के अकृत्रिम चैत्यालय हैं और जम्बवृक्ष और
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