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लब्धिसार
[ गाथा ७३ जाता है अर्थात चयहान ऋमसे दिया जाता है। उसका विधान इसप्रकार है-उदयावलि प्रमाण द्रव्य (३२००) को प्रावलिरूप गच्छ (८) से भाजित करनेपर मध्यम धन (३२००८-४००) प्राप्त होता है । एकएकाद्ध बान (८-१=७) के प्राधे (4) को निषेक भागाहार (८x२-१६) में से घटानेपर जो शेष (१६-५ ५ ) का भाग मध्यमधनमें देनेगर चयका प्रमागा (४००-१=३२) प्राप्त होता है । इस चय (३२) को निषेकभागाहार (१६) से गुरगा करनेपर प्रथमनिषेक (३२४१५= ५१२) हो जाता है। इस प्रथमनिषक (५१२) से ऊपरके निषक (४८०-४४८४१६-३८४-३५२-३२०-२८८) चय (३३) हीनक्रममे हैं (५१२-३२=४८०, ४८०-३२-४४८ इत्यादि) । पुनः बहुभागप्रमारग (असंख्यातलोक बहुभाग) द्रव्यको ज्दयावलिसे बाहर गुणश्रेरिणमें देता है । इसमें से उदयावलिसे बाह्य अनन्तर स्थितिम असंख्यात समयप्रवद्धप्रमाण द्रव्यको निक्षिप्त करता है तथा उससे उपरिस्थिति में असंख्यातगुण द्रव्यको देता है । इसप्रकार अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे विशेष अधिककालमें गुणागिशीर्षके प्राप्त होनेतक उत्तरोत्तर असंख्यातगुरिगत | रिणरूपसे निक्षिप्त करता है। इसप्रकार पल्यके असंख्यातवेंभागसे भाजित अपकर्षितद्रव्य एकभाग द्रव्यका विभाजन हया। शेष बहभागको गणश्रेगिशीर्षसे उपरिमनिपकों में देता है। गुणा श्रेणि शीर्षकी उपरिम अनन्तरस्थिति में असंख्यातगुणा हीनद्रव्य देता है, उसके पश्चात् प्रतिस्थापनाबलिको प्राप्त न होता हुआ उससे पूर्वको अन्तिमस्थिनिपर्यन्त क्रमसे विशेष (चय) हीन द्रव्यका निक्षेप होता है । गुणवे गिाके प्रथमसमयको एकशलाका, इससे असंख्यातगुणी द्वितीयसमयवर्ती शलाका, इससे भी असंख्यातगग्गी तृतीयसमयकी शलाका इसप्रकार गुणभे रिणके अन्ततक प्रतिसमय शलाका असंख्यातगुणित क्रम लिये हुए है। सर्वसमयसम्बन्धी शलाकारोंका जोड़ देकर जो प्राप्त हो उसमे गुणाश्री पीके लिये अपकर्षितद्रव्यको भाजित करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसको अपनी-अपनी शलाकामोंसे गुणा करनेपर अपने-अपने निषेकके निक्षिप्तद्रव्यका प्रमाण प्राप्त हो जाता है। पुनः गुणवे रिगसे उपरिमस्थितियोंके लिए अपकषितद्रव्यको कुछ अधिक डेढ़गुणहानिसे भाजित करनेपर गुणश्रेरिगसे उपरिम प्रथमनिषेकमें निक्षिप्तद्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है जो गुणश्रेरिणके अन्तिमनिषेकमें निक्षिप्त द्रव्यका
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ज. ध. पु. १२ पृ. २६५ ।