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लब्धिसार
वह बढ़ती हुई कितनी होती है तो हो कहते हैओरियनदो बिदीयावलिपडमुक्कडणे वरं हेट्ठा । अइच्छावणमाबाद्दा समयजुदावलियपरिहीणा ॥ ३७ ॥
गाथा ६७-६६
अर्थ - वहांसे उतरकर सत्कर्मसम्बन्धी द्वितीयावलिके प्रथम निषेक ( जो वर्तमानसमय से प्रावलिकाल के बाद उदयमें आवेगा ) का उत्कर्षण होनेपर अधस्तन समाविका लिसे हीन प्रबाधाकालप्रमाण उत्कृष्ट प्रतिस्थापना होती है ।
विशेषार्थ -- पूर्वके सत्कर्मसम्बन्धी उदयावलिके निषेकोंका उत्कर्षण सम्भव नहीं है । उदयावलिसे बाह्य- अनन्तर प्रथमनिषेकका उत्कर्ष होनेपर वर्तमान स्थितिवाले कर्मबन्धकी उत्कृष्टबाधाके बाहर स्थित निषेकों में उत्कर्षित प्रदेशों का उत्कृष्टनिक्षेपण होता है। श्रावाधाकाल प्रतिस्थापना होती है । वर्तमानसमय में बंध होनेसे श्रीबाधाकाल वर्तमान समयसे प्रारम्भ हो जाता, किन्तु जिसनिषेकका उत्कर्षण हुआ है, वह वर्तमान समयसे एकग्रावलिके ऊपर स्थित है अतः आबाधाकालमें से एक प्रावलि और एकसमय (उत्कर्षरण होनेवाले निषेकसम्बन्धी ) कम करनेपर उत्कृष्ट प्रतिस्थापना होती है ।
उदाहरण - उत्कृष्टस्थितिका प्रमाण ४८ समय उत्कृष्ट प्रबाधा १२ समय : आवलिका प्रमाण समय: वर्तमान में ४८ समय उत्कृष्टस्थितिवाले कर्मका बन्ध हुआ है । वर्तमानसमय से १२ समयवाली उत्कृष्ट प्रावाधा प्रारम्भ हो जाती है, किन्तु जिस निषेकका उत्कर्ष हुआ है वह उदयावलि (४ समय ) से बाहरका प्रथम निषेक अर्थात् वर्तमान से पांचवां निषेक है, अतः आवाधाकाल ( १२ समय ) में से पांचसमय कम करनेपर (१२-५) ७ समय उत्कृष्ट प्रतिस्थापना है ।
श्रव प्रकरण प्राप्त गुणश्रेणिनिर्जराका कथन करते हैं-उदयामावलिहि य उभयाणं बाइरम्मि विवरण । लोयागमसंखेज्जो कमसो उक्कणो हारो ॥ ६८ ॥ ॥ प्रोक्कडुिदइ गिभागे पल्लासंखेण भाजिदे तस्थ | बहुभागमिदं दव्वं उब्वरिल्ल ठिदीषु णिक्खिवदि ॥ ६६ ॥
ज.ध.पु पृ. २५६ ॥
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