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उपक्रम : सकल्प
श्रमण जड़ और वक्र होते थे, अतः उन्हें सुख-बोध्य एव सुपाल्य हो, इस दृष्टि से मोक्ष मार्ग एक होने पर भी आचार-कल्प मे अन्तर किया गया है।
प्रथम तीर्थ ङ्कर के श्रमण जड़ होते थे, उनमे बावीस तीर्थङ्करों के श्रमणों जितनी प्रतिभा की तेजस्विता नही होती। वे किसी भी वस्तु के अन्तस्तल तक जल्दी नहीं पहुंच पाते, सरल होने के कारण वे भूल को सहज रूप में स्वीकार कर लेते थे। जैसे कि निम्न उदाहरण से स्पष्ट है
एक बार भगवान् ऋषभदेव के श्रमण शौच के लिए गए। बहुत विलम्ब से लोटे। गुरू ने पछा- "इतना विलम्ब कैसे हुआ?" शिष्यो ने निवेदन किया-"गुरुदेव ! मार्ग में एक नट नृत्य कर रहा था, हम उसे देखने के लिए रुक गए।" गुरू ने उपालम्भ दत हुए कहा- "वत्स । श्रमणों को नट का नत्य नही देखना चाहिए।" "तहति" कहकर उन्होंने गुरू के आदेश को शिरोधार्य किया।
___ कुछ ही दिन व्यतीत हुए, एक दिन पुन: शिष्य विलम्ब से आये। गुरू ने कारण पूछा। उन्होने बताया, 'गुरुदेव । मार्ग में एक नटनी का मनोहर नत्य हो रहा था, उसे देखने के लिए हम रुक गये।' आज्ञा की अवहेलना करने के कारण गुरू ने विशेष उपालम्भ देते हुए कहा-जब नट का नत्य देखने का निषेध किया गया तो स्वतः ही नटनी के नृत्य का निषेध भी समझ लेना चाहिए। क्योंकि वह विशेष राग का कारण है। शिष्यों ने अपनी भूल स्वीकार की और भविष्य में सावधानी रखने का सकल्प किया।
बावीस तीर्थरो के श्रमण मेधावी होते थे। उनके जीवन में भी ऐसा ही प्रसंग आया। गुरु ने नट-नृत्य का निषेध किया, उन्होंने बुद्धि की प्रखरता से नटनी आदि सभी प्रकार के नृत्यो का निषेध समझ लिया।
महावीर के श्रमण जड और वक्र होते थे। उनके जीवन में जब ऐसा प्रसंग आया तो उन्होंने गुरु को उपालम्भ देते हुए कहा-'आपकी भूल है। आपने प्रथम स्पष्टीकरण क्यों नही किया कि 'नट का नत्य नहीं देखना और नटनी का भी नही देखना चाहिए। आपने ऐसा कहा नहीं, सिर्फ नट के नृत्य का निषेध किया, अतः हम नटनी का नृत्य देखने लग गए।' यह है जडता के साथ वक्रता का निदर्शन ! -- जड़ और सरल
दूसरा दृष्टान्त देखिये-कोकण देश मे एक श्रेष्ठी रहता था। आचार्य के वैराग्यमय उपदेश को सुनकर उसे संसार से विरक्ति हुई। दीक्षा ग्रहण की। एक दिन ईर्यावही के कायोत्सर्ग में उसे अधिक समय लगा। गुरु ने पूछा-'वत्स ! इतने समय तक ध्यान में क्या चिंतन किया था ?
शिष्य ने कहा-"गुरुदेव ! जीव दया का सूक्ष्म चिंतन कर रहा था।