________________
मर्म संहरण : शक की विचारणा
५१
हजार नेत्र होने से इन्द्र का एक नाम सहस्राक्ष है । जैनाचार्यों का यह मन्तव्य है कि इन्द्र के पांच सौ मंत्री हैं, उनके परामर्श से ही वह शासन सूत्र का संचालन तथा राज्य व्यवस्था करता है | आलंकारिक भाषा में मंत्री राजा की आँख होती है इस दृष्टि से पांच सौ मंत्री होने से इन्द्र 'सहस्राक्ष' कहलाता है । वैदिक परम्परा के अनुसार एक बार इन्द्र गौतमऋषि की पत्नी अहिल्या पर आसक्त हुआ, ऋषि ने सहस्रभग होने का श्राप देना चाहा । पर अभ्यर्थना करने पर उसने सहस्राक्ष होने का श्राप दिया, जिससे वह सहस्राक्ष कहलाया । ऋग्वेद में भी इन्द्र को सहस्राक्ष कहा है । "
१०५
महामेघ ( वृष्टि आदि का स्वामी) उसके वश में होने से वह मघवा कहलाता है । 'पाक' नामक एक बलवान दैत्य पर शासन करने से वह पाकशासन कहलाया । दक्षिणार्ध भरत का अधिपति होने से दक्षिणार्धपति है । बत्तीस लक्ष विमानों का स्वानी है । ऐरावत हाथी का उपयोग करने से ऐरावतअधिपति है ।"
१०६
मूल :
से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउन्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं, सपरिवाराणं तिन्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, उन्हं चउरासीए आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीर्ण वेमाणियाण देवाणं देवीण य आहेवच्च पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्त महत्तरगत्तं आणाईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइयतं तीतलताल तुडियघणमुइंगपडुपडहवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरह ॥ १४ ॥
अर्थ- वह इन्द्र वहाँ बत्तीस लाख विमानों का, चौरासी हजार सामानिक