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गर्भ संहरण : शक की विचारणा मउडकुडलहारविरायंतवच्छे पालंबपलबमाणघोलंतभूसणधरे ससंभम तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुठेह, सीहासणाओ अब्भुटिठत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, २ वेरुलियव रिट्ठरिट्ठअंजणनिउणोवियमिसिमिसितमणिरयणमंडियाओ पाउयातो ओमुयइ, २ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ,एगसाडियं उत्तरासंगंकरिता अंजलिमउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणु अंचेइ. वामं जाणु २ त्ता दाहिणं जाणं धरणितलंसि साहटु तिखुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ, तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडगतुडियर्थभियाओ भुयाओ साहरइ, कड० २ त्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी ॥१५॥
___ अर्थ-वह इन्द्र अपने विपुल अवधिज्ञान से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर देखता है। उस समय वह श्रमण भगवान महावीर को जम्बूद्वीपस्थ भारतवर्ष के दक्षिणार्धभरत के ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या जालंधर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भ रूप में उत्पन्न हुए देखता है। उसका हृदय हृष्ट, तुष्ट, आनन्दित, परमानन्दित, व प्रीतियुक्त होता है । परम सौमनस्य को प्राप्त करता है। हर्ष से उसका हृदय फूल उठता है। मेघधारा से सिचित कदम्ब वृक्ष के सुगन्धयुक्त विकसित कुसुमों की तरह रोमांचयुक्त हो जाता है। प्रफुल्लित उत्तम कमल की तरह नेत्र व मुख खिल उठते हैं । श्रेष्ठ कड, पुहची, के यूर (बाजूबंध) मुकुट [सिर का आभूषण] कुण्डल (कान का भूषण) पहने हुए, तथा हार से सुशोभित बक्षस्थल वाला, लम्बे लटकते हुए पुन: पुन. दोलायमान आभूषणों को धारण किया हुआ, सुरेन्द्र ससंभ्रम-सहसा शीघ्र ही सिहासन से उठकर खड़ा हुआ।०१ पादपीठ से नीचे