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कल्प सूत्र
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एकान्त स्निग्ध था, अतः अग्नि उत्पन्न नहीं हो सकती थी । अग्नि की उत्पत्ति के लिए एकान्त स्निग्ध और एकान्त रुक्ष दोनों ही काल अनुपयुक्त होते हैं । समय के कदम आगे बढ़े। जब काल स्निग्ध से रुक्ष हुआ तब लकड़ियों को घिस कर अग्नि पैदा की और पाक निर्माण कर तथा पाकविद्या सिखाकर खाद्य समस्या का समाधान किया । "
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कला का अध्ययन - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार सम्राट् ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को बहत्तर कलाएँ और कनिष्ट - पुत्र बाहुबली को प्राणिलक्षण का ज्ञान कराया । प्रियपुत्री ब्राह्मी को अठारह लिपियों का अध्ययन कराया और सुन्दरी को गणितविद्या का परिज्ञान कराया ।' व्यवहार साधन हेतु मान ( माप) उन्मान ( तोला, मासा आदि वजन ) अवमान ( गज फुट इंच ) प्रतिमान ( छटांक, सेर, मन आदि) प्रचलित किए और मणि आदि पिरोने की कला बताई ।
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इस प्रकार सम्राट् ऋषभदेव ने प्रजा के हित के लिए, अभ्युदय के लिए पुरुषों को बहत्तर कलाएँ, स्त्रियों को चौसठ कलाएँ और सौ शिल्पों का परिज्ञान कराया । असि, मषि और कृषि (सुरक्षा, व्यापार, उत्पादन) की व्यवस्था की, कलाओं का निर्माण किया, प्रवृत्तियों का विकास कर जीवन को सरस, शिष्ट और व्यवहार योग्य बनाया ।
अन्त में अपनी राज्य व्यवस्था का भार भरत को सौंपकर और शेष निन्यानवें पुत्रों को अलग-अलग राज्य दे, दीक्षा ग्रहण के लिए प्रस्तुत हुए । प्रथम मिक्षाचर
मूल
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उसमे अरा कोसलिए दवखे पनि पडिरूवे अल्लीणree वीणीए वीसं पुव्वसयसहरसाई कुमारवासमज्के वसई, वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्भे वसित्ता तेवट्ठि पुव्वसयसहस्साई रज्जवासमझे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयप