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कल्पसू
२२ मणगपिउणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुगियायणसगोत्ते ॥२०॥
अर्थ-श्रमण भगवान महावीर काश्यपगोत्री थे। काश्यपगोत्री श्रमण भगवान् महावीर के अग्निवैशायन गोत्री स्थविर आर्यसुधर्मा नामक अन्तेवासी शिष्य थे। अग्निवैशायन गोत्री स्थविर आर्यसुधर्मा के काश्यपगोत्री स्थविर आर्य जम्बू नामक अन्तेवासो रे । काश्यपगोत्री स्थविर आर्य जम्बू के कात्यायन गोत्री स्थविर आर्य प्रभव नामक अन्तेवासी थे। कात्यायन गोत्री स्थविर आर्य प्रभव के वात्स्यगोत्री स्थविर आर्य सिज्जभव (शय्यभव) नामक अन्तेवासी थे। मनक के पिता और वात्स्यगोत्री स्थविर आर्यसिज्जंभव के तुगियायन गोत्री स्थविर जसभ६ (आर्य यशोभद्र) नामक अन्तेवासी थे।
विवेचन-श्रमण भगवान महावीर के परिनिर्वाण के सोलह वर्ष पूर्व मगध की राजधानी राजगृह में जम्बूकुमार का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम श्रेष्ठी ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था। ये अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे।
सोलह वर्ष की उम्र में आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। पाणिग्रहण से पूर्व ही संयम लेने का सकल्प किया, किन्तु माता-पिता के आग्रह पर सुन्दरियों से पाणिग्रहण किया, दहेज में 8 करोड़ का धन मिला। किन्तु सुधर्मा स्वामी के वैराग्यरंग से परिप्लावित प्रवचन को सुनकर इतने विरक्त हुए कि बिना सुहाग रात मनाये ही आठ सुन्दर पत्नियों का, एवं अपार वैभव का परित्याग कर भगवान् सुधर्मा के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। जम्बू के साथ ही उनके माता-पिता ने तथा आठों पत्नियां और उनके भी माता-पिताओं ने, तथा दस्युराज प्रभव व उसके साथ के पांच सौ चोरों ने इस प्रकार पांच सौ सत्तावीस व्यक्तियों ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की। करोड़ों का धन जनकल्याण के लिए न्यौच्छावर कर दिया।
सोलह वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की । बारह वर्ष तक सुधर्मा स्वामी से आगम की वाचना प्राप्त करते रहे। वीर निर्वाण संवत् एक में दीक्षा ग्रहण