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स्पविरावली : विभिन्न शाखाएँ
२६७ त्तिया, से तं साहाओ। से किं तं कुलाई ? एवमाहिज ति, तं जहा
पढमं च नागभूयं, बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं, चउत्थयं हथिलिजतु ॥१॥ पंचमग नंदिज, छ8 पुण पारिहासियं होइ । उद्द हगणस्सेते, उच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥२११॥
अर्थ – काश्यपगोत्रीय स्थविर आर्य रोहण से यहां पर उद्देहगण नामक गण निकला । उनकी ये चार शाखाएँ और छह कुल इस प्रकार कहलाते हैं
प्रश्न-वे शाखाएं कौनसी-कौनसी हैं ?
उत्तर-वे शाखाएँ इस प्रकार कही जाती हैं । जैसे-(१) उदुबरिज्जिया (उदुम्बरीया)५ (२) मासपूरिआ" (या) (३) मईपत्तिया (४) पुण्णपत्तिया।
प्रश्न-वे कुल कौन से हैं ? __उत्तर-वे कुल इस प्रकार कहलाते हैं-जैसे (१) नागभूय (नागभूत), (२) सोमभूतिक, (३) उल्लगच्छ (आर्द्र कच्छ), (४) हत्थलिज्ज (हस्तलेह्य) (५) नन्दिज्ज (नन्दीय), (६) पारिहासिय (पारिहासिक) ये उद्देहगण के छह कुल जानना। मूल :
थेरेहितो णं सिरिगुत्तेहितो णं हारियसगोत्तेहित्तो एत्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ सत्त य कुलाई एवमाहिति । से किं तं साहातो ? एवमाहिज्जंति, तं जहा-हारियमालागारी संकासिया गवेधूया वजनागरी, से तं साहाओ। से किं तं कुलाइं? एवमाहिजति, तं जहा