________________
समाचारी : कठोर वाणी : क्षमापना
सकता है । यदि वर्षावास से पूर्व अवग्रह नहीं लेता है, तो वर्षावास में अन्य स्थान पर रात्रि निवास नही कर सकता, अतः तीन मकानों का विधान किया है। और साथ ही उनकी प्रतिलेखना करने का भी । प्रतिलेखन के समय का सूचन समय बाहर जाने पर, पूर्वाह्न में एक बार अवश्य प्रतिलेखना करनी
।
करते हुए चूर्णिकार ने कहा है, भिक्षा के या सायंकाल (तालियं) तक दिन में चाहिए 134
मूल :
३५०
वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गं थी वा अन्नयरिं दिसं वा अणुदिसं वा अवगिज्झिय भत्तपाणं गवेत्ति से किमाहु भंते ! ? ओसन्नं समणा वासासु तवसंपउत्ता भवति, तवस्सी दुब्बले किलंते मुच्छिज्ज वा पवडिज्ज वा तामेव दिसं वा अणुदिसं वा समणा भगवंतो पडिजागरंति
॥२८८॥
अर्थ - वर्षावास में रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को किसी एक निश्चित दिशा को या विदिशा को उद्देश्य कर भक्त पान के लिए गवेषणा करने के लिए जाना कल्पता है ।
प्रश्न - हे भगवन ! ऐसा किसलिए कहा है ?
उत्तर— श्रमण भगवान् वर्षाऋतु में अधिकतर तप में सम्यक् प्रकार से संलग्न होते हैं । तपस्वी तन से दुर्बल और थके हुए होते हैं । कदाचित् वे मार्ग में मूर्च्छा को प्राप्त हो जाएं या गिर जाएँ तो यदि वे एक निश्चित दिशा या विदिशा में गये हों तो उस ओर श्रमण भगवान् तपस्वी की खोज कर सकते हैं ।
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गं