Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

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Page 442
________________ ४४ ३१. मीया व सा हि वट्टु एगते संजयं तयं । बाहाहि काउ संगोप्फं, वेवमाणी निसीयई ॥ ३२. जइ सि रूपेण बेसमणो, सलिएण, नलकूबरी । सहा वि सेन इच्छामि, जय सि सक्खं पुरंदरां परखंदे जलिये जो धूमकेउ दुरासयं । नेच्छति बंतयं भोतु फुलेजाया अगपणे । चिरत्यु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा । वंत इच्छसि आवेउ सेयं ते मरणं भवे । ३३. (क) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र ६८ (ख) उत्तराध्ययन २४. (क) वसुदेव हिन्डी (ख) त्रिपष्टि शनाका० स ७ (ग) जैन रामायण ३५० (क) अहंतु भगवती मल्ली के विस्तृत वर्णन के लिए देखे – ज्ञाना धर्मकथा १६ बडप्पन्न महापुरुष चरिउ त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र ५०१ ६११, ६२ ३. शातिनाथ चरित्र ३७. (क) धन मिहूण सुर महम्बल ललियग य बदरजच मिठ्ठणे य सोहम्म विज्ज अच्य चक्की सव्वट्ठ उसमे य । (ख) लेखक की पुस्तक ऋषभदेव एक परिशीलन । (ख) त्रिपष्टि शलाका ६६ ३६. अहं शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ एवं अरनाथ ये तीनो तीर्थ कर क्रमश: पाचवे छडे एवं सातवें चक्रवर्ती भी हुए। एक ही भव मे दो महान् पदवी का उपभोग किया। इनके विस्तृत जीवन चरित्र के लिए देखें- १. २. -उत्तरा० २२।३५ - उत्तरा० २२१४०-४३ ३८. त्रिषष्टि० १११।५५ से ६१ पृ० ३।२ ३६. ( क ) आवश्यक नियुक्ति गा० १६८ (ख) आवश्यक पूर्णि पृ० १३२ (ग) त्रिवष्टि० १।१।१४० मे १४३ १०६ ४०. ( क ) आवश्यक मलय० वृ० प० १५८ (ख) त्रिषष्टि० ११७१४१७१५ ४१. (क) आवश्यक पूर्णि० १३३ १३४ (ख) त्रिपष्टि १।१।१०७ - १०११०३२ - आवर मलय० वृत्ति पृ० १५७।१

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