Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

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Page 462
________________ परिशिष्ट-७ कल्पसूत्र का संक्षिप्त पारिभाषिक शब्द-कोश अचेलक-कल्प का एक भेद । देखिये तथा मनुष्यो के पुरुषार्थ आदि 'कल्प' शब्द । गुण जिस कालक्रम में क्रमशः अट्रमभक्त-लगातार आठ समय (वक्त)तक घटते-जाते हैं, वह समय । काल आहार पानी का परित्याग, चक्र का अपकर्ष-युग। किंवा केवल आहार का त्याग- अवस्वापिनी-मनुष्य आदि को गहरी नीद तीन दिन का उपवास; तेला। दिला देने वाली एक विद्या। अनगार--मुनि । गृह का त्यागकर मुनिव्रत स्वीकार करने वाला श्रमण । अष्टांग महानिमित्त-आठ प्रकार की अनुत्तरोपपातिक-अनुत्तर-सर्वश्रेष्ठ देव निमित्तविद्या । जंसे (१) अंग विमान में, औपपातिक- जन्म विद्या-शरीर के अगोंपांग के लेने वाला देव। फुरकने से लाभालाभ का ज्ञान । (२) स्वप्न विधा-शुभाशुभ स्वप्नों अनुत्तर विमान- सर्वश्रेष्ठ देव विमान । का फल ज्ञान । (३) स्वरविद्याअभिग्रह-दृढ़ संकल्प, निश्चय जो कि जहाँ काक, शृगाल, उल्लू आदि तक सफल नहीं होता, वहां तक पक्षियों के स्वर से लाभालाभा गुप्त रखा जाता है। का परिज्ञान। (४) भू विद्याअवग्रह- चातुर्मास मे एक स्थान पर रहने भूकम्प आदि से लाभालाम का के बाद आस-पास के क्षेत्र में ज्ञान । (५) लक्षण विधा-शरीर जाने-आने की मर्यादा का निर्धा पर के तिल, मष आदि लक्षणों रण करना। से शुभाशुभ का परिज्ञान । (६) अवधिज्ञान-इन्द्रियों की सहायता के बिना रेखाविज्ञान - हाथ पांव आदि की होने वाला रूपी पदार्थों का रेखाओं पर से शुभाशुभ परि. ज्ञान। ज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र । (७) अवधिज्ञानी-अवधिज्ञान जिसे प्राप्त हुआ आकाश विज्ञान-आकाश में होने हो वह साधक। वाले उल्कापात आदि आकअनशन- अशन-भोजन ! भोजन का स्मिक आघातों पर से लाभापरित्याग करना--अनशन । एक लाम का ज्ञान । (८)नक्षत्रविद्या नक्षत्रों के उदयअस्त आदि पर प्रकार का तप । से शुभाशुभ का परिज्ञान । अवसर्पिणी-कालचक्र का अर्धभाग । भूमि, वृक्ष आदि वस्तुओं का स्वारस्य अष्ट कर्म-देखो 'कर्म' शब्द ।

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