Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ ६ सारसी ( ६२ ) २ अर्घसम-प्रथम और तृतीय, द्वितीय ग्राम ओर मूर्च्छनाएं: -- और चतुर्थ पाद समान संख्या सात स्वरों के तीन ग्राम है:वाले हों। १ षडज प्राम ३ विषमसम-किसी भी पाद की संख्या २ मध्य प्राम, एक दूसरे से नहीं मिलती हो। ३ गांधार ग्राम -अनुयोग द्वार गा०१० सप्तस्वर षडज ग्राम की सात मूर्च्छनाएं:१ षडज-नासिका, कंठ, छाती, तालु, १ माग जिल्हा, दांत, इन छह स्थानों २कौरवो, से उत्पन्न । ३ हरिता, २ वृषभ-जब वायु नाभि से उत्पन्न होकर ४ रत्ना कण्ठ और मूर्धा से टक्कर ५ सारकान्ता खाकर वृषभ के शब्द की तरह निकलता है। ३ गांधार-जब वाय नाभि से उत्पन७ शुद्धष इजा होकर हृदय और कण्ठ को स्पर्श मध्य ग्राम की सात मूर्च्छनाएंकरता हुआ सगंध निकलता है। १ उत्तरमंदा ४ मध्यम- जो शब्द नाभि से उत्पन्न २ रस्ना होकर हृदय से टक्कर खाकर ३ उत्तरा पुनः नाभि में पहुंचे। अर्थात् ४ उत्तरासमा अन्दर ही अन्दर गूजता रहे। ५ समकान्ता, ५ पञ्चम-नाभि, हृदय, छाती, कंठ और ६ सुवीरा सिर इन पांच स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर । ७ अभिरूपा गांधार ग्राम की सात मूच्र्छनाएँ ६ घेवत-अन्य सभी स्वरों का जिसमें मेल हो, इसका अपर नाम रैवत भी है। २ क्षुद्रिका ७ निषाद-जो स्वर अपने तेज से अन्य . ३ पूरिमा स्वरों को दबा देता है और ४ शुद्धगान्धार जिसका देवता सूर्य हो। ५ उत्तर गांधार

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474