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औद्देशिक (३) शय्यातर पिण्ड
उनके प्रवचन को सूत्र-मागम रुप (४) राज पिण्ड (५) कृतिकर्म
में अथित करते है। (६) व्रत (७) ज्येष्ठ (८) प्रति- गणनायक-गणतत्र राज्य व्यवस्था का क्रमण (६) मासकल्प (१०)
प्रधान पुरुष-मुख्य नेता। पर्युषणा कल्प । विवरण के लिए देखें
गणावच्छेदक-मुनि समूह को गण' कहते
हैं, 'गण' की सुरक्षा व विकास पृष्ठ ३ से १६ तक
के लिए मुनि मंडल को सयम कायोत्सर्ग-शरीर आदि के विकल्प से मुक्त
आदि की दृष्टि से संभालने होकर ध्यान करना। एक प्रकार
वाला प्रमुख मुनि । को ध्यान मुद्रा।
गणिपिटक-बारह अगो का समूह वाचक कायगुप्ति-देखिए - 'गुप्ति!'
नाम 'गणिपिटक' है। कुलकर-कुल की व्यवस्था करने वाला। गणी-गण की व्यवस्था करने वाला युग की आदि में जब मानव
अधिकारी मुनि-आचार्य । प्रजा कुल व समूह के रुप मे व्यव समि-विवेक पर्वक आत्म-सयम, नियमन स्थित नही थी, उस युग में सर्व ।
करना गुप्ति है । गुप्ति के तीन प्रथम कुल व्यवस्था का प्रारम्भ
भेद है-(१) मनोगुप्ति - मन का करने वाले कुलकर कहलाए।
संयम, (२) वचन गुप्ति-वाणी का इस युग मे सात कुलकर
संयम, (३) कायगुप्ति-शरीर का हए। जिनमें अन्तिम कुलकर
सयम। थे भगवान ऋषभदेव के पिता गोदोडासन-गाय को दुहते समय ग्वाला नाभि राजा ।
जिस प्रकार बैठता है उस प्रकार केवलवरज्ञान-निखिल विश्व के जड़ चेतन
बैठना गोदोहासन है। के भूत-भविष्य एव वर्तमान गंधहस्ती-वह श्रेष्ठ जाति का हस्ती, कालीन समस्त भावो को जानने
जिसके शरीर से एक प्रकार की वाला श्रेष्ठतमज्ञान । त्रिकाल
विचित्र गन्ध निकलती रहती है ज्ञान।
जिसके कारण अन्य हाथी भय केवलज्ञानी-केवलज्ञान को धारण करने
खाते हैं। वाला महान आत्मा
चउदसम भक्त- लगातार चौदह वक्त क्षुल्लक-छोटी उम्र का श्रमण । लघु मुनि ।
तक आहार आदि का परित्याग खादिम-फल आदि खाद्य पदार्थ ।
करना। छह दिन का उपवास।
चतुर्थ भक्त-लगातार चार वक्त तक गणधर-तीथंकर के मुख्य शिष्य, जो गण
बाहार आदि का परित्याग को व्यवस्था करते हैं, तथा
करना । एक दिन का उपवास ।