Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

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Page 466
________________ पौरुषी ( ६ ) - समय का एक भाग । अहोरात्र (दिन रात) का आठवां हिस्सा एक पौरुषी ( प्रहर) कहलाता है। दिन में चार पोरुषी होती है, रात्रि में चार । प्रहर - देखिए 'पौरूषी' । प्रतिमा - साधु एवं श्रावक के सामान्य नियमो के अतिरिक्त विशेष प्रकार के कठोर नियमों का व तपश्चर्या आदि का आचरण करना प्रतिमा कहलाता है। भिक्षु को बारह प्रतिमा हैं, एव श्रावक की ग्यारह । बलिकर्म- गृह देवता का पूजन करना । भक्तप्रत्याख्यान - भक्त अर्थात् भोजन-पानी, अथवा भोजन का परित्याग करना - भक्तप्रत्याख्यान है । भवनपति - विशेष प्रकार को देव जाति जो भवनो में रहती है । भाषा समिति - देखिए 'समिति ' मडंब जिस स्थल के चारों ओर दो-दो कोश तक कोई ग्राम न हो, वह स्थल विशेष । मनः पर्यव ज्ञान- मन के भावो को जानने वाला ज्ञान। यह ज्ञान सिर्फ संयती को ही होता है । मनोगुप्ति - देखिए 'गुप्ति ।' मारणांतिक संलेखना जीवन के अन्त्य समय में मृत्युपर्यन्त आहार आदि का परित्याग करना । यवनिका - पर्दा विशेष । रस विकृति ( विगय ) - जिन वस्तुओं के सेवन से मन में सरस रस विकार आदि उत्पन्न होने की संभावना हों - उन्हें विकृति - विगय कहते हैं । विगय नौ प्रकार की होती हैं- दूध, दही, मक्खन, घी, तैल, गुड, मधु, मद्य और मांस । लोकान्तिक- एक जाति के देव जो ब्रह्मलोक के अन्त में रहते हैं, तथा तीथङ्कर जब दोक्षा लेने का संकल्प करते हैं, तब उन्हें विश्वकल्याण के लिए प्रार्थना करने आते हैं। वचन गुप्ति -- देखिए - 'गुप्ति ।' वादी वाद विवाद करने मे निपुण । ( वादलब्धि ) - वाद विवाद करने की योग्यता वाली विशेष शक्ति । त्राणव्यन्तर – एक जाति के देव जो वन विशेष मे उत्पन्न होते हैं, रहते हैं और वन में क्रीडा करते हैं जिन्हे भूत पिशाच आदि नाम से भी पुकारा जाता है । विकट — निर्दोष आहार पानी । विकट गृह - ग्राम की पंचायती व लोकों के एकत्र होने का स्थान, चबूतरा आदि । विपुल विकृष्ट भक्त - अट्टम भक्त ( तीन दिन के उपवास) से अधिक तप करना । मतिज्ञान- मनः पर्यव भेद । इस ज्ञान में भावों की विशुद्धि विशेष रहती है तथा ज्ञान का

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