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१००. (क) चयमाणे ण जाणति, जतो एगसमइतो उवओगो णत्थि ॥
-कल्पसूत्र चूणि, सू० ३ पृ० १०२ (ग) “चयमाणे न जाणइ" त्ति एक सामयिकत्त्वात् च्यवनस्य, “एग सामाइओ नत्थि उवओगो"
त्ति, आचाराङ्गवृनै यथा- "आन्तमौहत्तिकत्त्वाच्छापस्थिकज्ञानोपयोगस्य च्यवनकालस्य च सूक्ष्मन्वादिति ॥” (श्रुत० ३, चू० पत्र ४२५)
-कल्पसूत्र टिप्पन आ० पृथ्वी० मू० ३ पृ० १-२ १०१. चुरा मि त्ति जाणड, तिनाणोवगओ होत्था जम्हा। -कल्पसूत्र पृथ्वीचन्द्र टिप्पन, सूत्र ३ पृ० २ १०२ कल्पमूत्र पृथ्वीचन्द्र टिप्पन सू० ४ पृ०२ १०३. कल्पमूत्र चूर्णी, सूत्र ४ पृ० १०३
छत्र तामरस धनूरथवगे दम्भोलिकूर्माकुगा । वापी स्वस्तिकतोरणानि च शर पञ्चानन' पादप ॥ चक्र शंखगजो समुद्रकलशी प्रामादमस्यो यवा ।।
यूपस्तूपकमडलून्यवनिभृत्सच्चामरो दर्पण. ॥ १५६।। ........वृषभ पताका कमलाभिषेक. मुदामकेकी धनपुण्यभाजाम् ।
-कल्पसुबोधिका व्या० १ उद्धृत, गुजराती अनुवाद पृ० ८२ साराभाई नबाब १०५ यजुनैद (३१-१) मे इन्द्र को 'सहस्रशीर्पा पुरुष. सहस्राक्ष महस्रपात्' अर्थात् हजार मस्तक वाला,
हजार ऑख और हजार चरण वाला पुरुष माना है। वहाँ पर इन्द्र एक भगवान के रूप में पूजा
गया है. और प्रत्येक सिद्धि के लिा इन्द्र से प्रार्थना की गई है। १०६ कल्पमूत्र चूणि मू० १३ पृ० १०२ १०७ वायरिंगक-इन्द्र के पूज्य स्थानीय पायर्यास्त्रशक जाति के देवता ।
-अर्धमागधी कोष (रन्नचन्द्रजी) भा० ३ पृ० ३६ १०८ विस्तृत व्याख्या व परिभाषा के लिए देखिये कल्पसूत्र पर आचार्य पृथ्वीचन्द्र कृत टिप्पन सू० १४ १०८B संगीत और वाद्य यन्त्रो के सम्बन्ध मे परिशिष्ट ५ में देखे । १०६. आभूषणो के विशेपार्थ के लिए देखे-कल्पसूत्र, पृथ्वीचन्द्र टिप्पण सू० १५ ११०. (क) कल्पसूत्र आ० पृथ्वीचन्द्र टिप्पण मू० १७ (ख) उग्गा भोगा रायण्ण खतिया संगहो भवे चउहा।
आरक्खगुरुवयंसा सेसा जे खत्तिया ते उ॥ -आवश्यक नियुक्ति० गा० १९८ (ग) आवश्यक चूणि पृ० १५४
(घ) त्रिषष्टि०१२।९७४ से ६७६ १११. (क) देसूणगं च वरिस सक्कागमण च वसठवणा य । -आवश्यक नियुक्ति गा० १८५ (ख) इतो य णाभिकुलगरो उसभसामिणो अकवरगतेण एव च विहरति । सक्को य महप्पमाणाओ इक्खुलट्ठीओ गहाय उवगतो जयावेइ ।
-आवश्यक चूणि, १५२