Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan
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२२३ (क) महावीर चरिय गुण पृ० १५३
(ख) बावश्यक, मलय०१० २६८
(ग) त्रिषष्टि० १०१३३११६ २२४. (क) आवश्यक मलय० २६६
(ख) त्रिषष्टि० १०॥३॥११७-११८
(ग) महावीर परियं ५० १५३ २२५. (क) महावीर चरियं १५३-१५४
(ख) आवश्यक मलय० पृ० २६६
(ग) त्रिषष्टि० १०॥३।१२२-१३० २२६. (क) खोमे ताहे सतविहं वेयणं उदीरेइ, तं जहा-सोस.यणं, नासवेयणं, दंतवेयणं, कण्णवेयणं,
अच्छिवेयणं, नहवयणं, पिठिवेयणं एक्केक्का वेपणा पागयजणस्स जीवियं संकामि समत्था, कि पुण सत्तवि समेयातो?
-आवश्यक मलय० वृत्ति (ख, महावीर चरियं प० १५४
(ग) त्रिषष्टि. १०१३३१३२।१० २३१२ २२७ (क) तत्थ सामी देसूणे चतारि जामे असीव परितावितो पभायकाले मुहत्तमेत्तं निद्दापमायं गतो।
-आवश्यक मलय०प०२७०११ (ख) महावीर चरियं प० १५५११
(ग) त्रिषष्टि० १०.३१४७ २२८. (क) आवश्यक नियुक्ति०५० २७०
(ख) भगवती शतक १६, उद्दे० ६, सू० ५८०
(ग) त्रिषष्टि १०३।१४७ से १५१ . । २२६. गिद्दपि नो पगामाए सेवइ भगयं उठाए। जग्गाबद्दय अप्पाणं, ईसि साइ या अपडिन्ने ।
-आचारांग १९६९ २३०. (क) मावश्यक मल प० २७०११
(ख) महाबीर चरियं. १५२१
(ग) त्रिषष्टि १०११५२ २३२. (क) आवश्यक मल प० २७०।१
(ख) महावीर चरियं १५५१
(ग) भगवती १६॥६५८० २३३. (क) सामी भणद-हे उप्पल ! जण्णं तुमं न याणसि तण्णं अहं दुविहं सागाराणगारियं धम्म पण्ण वेहामि ।
-आवश्यक मल० १०२७० (ख) महावीर परियं, गुणचन्द्र प० १५५ २३४. (क) बावश्यक मल० ०५० २७.

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