Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

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Page 422
________________ अत्युष्णं हरति बलं, पतिशीत मारुतं प्रकोपयति । अतिलवणमचाक्षुष्य-मतिस्नेहं दुर्जरं भवति ।। १६८. दु चउत्थ नवम बारस-तेरस पन्नरस सेस गम्भट्ठिई । - मासा अड-नव तदुवरि उसहाउ कमेणिमे दिवसा चउ पणवीसं छद्दिण, अडवोसं छच्च छ ञ्चिगुणवीसं । ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ सग छन्वीस छच्छ य, वीसिगवीस छ छब्बीसं । १६ १७ १८ १९ २० छप्पण अडसत्तट्टयं २१ २२ २३ २४ अडडठ्ठय छ सत्त होति गब्भदिणा ।' -सप्ततिस्थानक आचार्य सोमतिलक तिहि उच्चेहि नरिदो, पंचहि तह होइ अद्धचक्की य । छहि होइ चक्कवट्टी सत्तहि तित्थकरो होइ॥ १६६. तिहिठाणेहि लोगुज्जोएसिया, तं जहा अरहतेहि जायमाणहि, अरहतेमु पव्वयमाणेमु, अरहताण णाणुप्पायमहिमासु । --स्थानाग ३ १७०. बीस भवनपति निकाय के इन्द्र, बत्तीस बाणव्यन्तर निकाय के ईन्द्र, दो ज्योनिक निकाय के ईन्द्र और दस वैमानिक निकाय के इन्द्र-इस प्रकार ६४ इन्द्र होते है। १७१. (क) पदागुष्ठेन यो मेरुमनायासेन कंपयन् । लेने नाम महावीर इति नाकालयाधिपात -रविषेणाचार्य कृत. पद्मचरित्र पर्व २,लो. १६ पृ० १५ (ख) वामम (य) पायगुट्ठय कोडीए तो सलीलमह गुरुणा। तह चालिओ गिरीसो जाओ जह तिहुयणक्खोहो ।। ___ चउप्पन्नमहापुरिमचरियं, आचार्य शीला प्र० प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वागणमी ५, पृ० २७१ (ग) आकम्पिओ य जेणं, मेरू अङ्गटेएण लीलाए । तेणेह महावोगे, नाम सि कयं सुरिन्देहि । -पउमचरिय, विमलसूरि, २०२६ प्राकृत ग्रन्थ परिषद् वाराणसी ५ पृ० ६० १७२. गगरगुत्तिय-नगर का रक्षक । -अर्धमागधी कोप भा० २।६०६ १७३. (क) आवश्यक मूत्र मलयगिरिवृत्ति प० २५८ (ख) उत्तरपुगण पर्व ७४ श्लो० २६० (ग) आवश्यक चूणि, भाग १, पत्र २४६ (क) त्रिषप्टि० १०॥२॥१०४-५-६ (ख) आवश्यक भाष्य, गा० ७२१७३। प० २५८ (ग) उत्तर पुराण, पर्व ७४, श्लो० २८८

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