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समाचारी : मिक्षाचरीकल्प
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का काल होने पर यदि वर्षा हो रही हो तो भिक्षुक बाहर न निकले । भिक्षा के लिए निकलने के पश्चात् यदि वर्षा होने लगे तो ढके हुए स्थान में खड़ा हो जाय, आगे न जाय। उक्त प्रकरण के सन्दर्भ में अल्पवृष्टि में जाने का उल्लेख नहीं हुआ है, अपितु निषेध ही है । तीव्र वृष्टि, धुन्ध " और कुहरा गिर रहा हो उस समय नहीं जाना और अल्पवृष्टि में जाना यह श्रमणाचार की विधि के अनुसार किस प्रकार संगत हो सकता है यह गीतार्थ श्रमणों व आगम मर्मज्ञों के लिए विचारणीय है । हमारी दृष्टि से वर्षा में भिक्षा के लिए जाने की परम्परा विशुद्ध श्रमणाचार की परम्परा नही है ।
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मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं निग्गंथस्स निग्गंधीए वा गाहा व कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवएज्जा कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्यं वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि, वा उवागच्छित्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलंग सूवे कप्पर से चाउलोदणे पडिग्गाहित्तए नो से कप्पइ भलिंगसूवे पडिग्गाहित्तए तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते मिलिंग सूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पइ से भिर्लिंगसूवे पडिग्गा हित्तए नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहित्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं दो विपुव्वाउत्ताइं वहति कप्पंति से दो वि पडिगाहित्तए, तथ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ताइं नो से कप्पंति दो वि पडिग्गाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते से नो कप्प पडग्गाहित्तए || २५७॥
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अर्थ- वर्षांवास में रहे हुए और भिक्षा लेने की इच्छा से गृहस्थ के कुल