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मल
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से किं तं पाणहुमे ! पाणसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाकि, नीले, लोहिए, हालिद्द, सुकिले, अत्थि कुंथू अणुद्धरी नामं जा ठिया अचलमाणा छउमत्थाणं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा नो चक्खुफासं हव्वमागच्छर, जा अनिया चलमाणा छउमत्थाणं चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जा छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाणियव्वा पासियव्वा पडिलेहियव्वा भवइ, से त्तं पाणसुहुमे १ ।। २६६ ॥
अर्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह प्राण सूक्ष्म क्या है ?
मूल
कल्पसूत्र
उत्तर - प्राणसूक्ष्म अर्थात् अत्यन्त बारीक जो साधारण नेत्रों से न देखा जा सके, वैसे बेइन्द्रिय आदि सूक्ष्म प्राणी । प्राणसूक्ष्म के पाँच प्रकार बताये हैं । जैसे - ( १ ) कृष्ण रंग के सूक्ष्म प्राणी । ( २ ) नीले रंग के सूक्ष्म प्राणी, (३) लाल रंग के सूक्ष्म प्राणी, (४) पीले रंग के सूक्ष्म प्राणी, ( ५ ) श्वेत रग के सूक्ष्म प्राणी । अनुद्धरी कुंथुआ नामक सूक्ष्म प्राणी जो यदि स्थिर हो, चलता फिरता न हो, तो छद्मस्थ निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थिनी की दृष्टि में शीघ्र नहीं आ सकता । यदि वह स्थिर न हो, चलता फिरता हो तो छद्मस्थ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनी को शीघ्र ही दृष्टि गोचर हो सकता है । अतः छद्मस्थ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनी को पुनः पुनः उसे जानना चाहिए, देखना चाहिए, सावधानी से तल्लोनता पूर्वक प्रतिलेखना करनी चाहिए। यह प्राणसूक्ष्म की व्याख्या
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से किं तं पणगसुहमे ? पणगसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे नीले लोहिए हालिद े सुकिले, अस्थि पणगसुहुमे