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समाचारी : मिक्षाचरी कल्प
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मल:
वासवासं पज्जोसविए भिक्खु इच्छिज्जा गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्ति वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेययं वा जंवा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छिउँ आयरियं जाव जं वा पुरओ काउ विहरइ-इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा जाव पविसित्तए वा, ते य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइ कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, से किमाहु भत्ते ! ? आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥२७४॥
अर्थ-वर्षावास में रहे हए भिक्षु को आहार के लिए या पानी के लिए गृहस्थ के घर जाने की या प्रवेश करने की इच्छा हो तो आचार्य से, अथवा उपाध्याय से, अथवा स्थविर से, अथवा प्रवर्तक से, अथवा गणि से, अथवा गणधर से, अथवा गणावच्छेदक से, अथवा जिस किसो को प्रमुखमान कर विचरण करता हो, उससे बिना पूछे उसे इस प्रकार करना नहीं कल्पता है। आचार्य, अथवा उपाध्याय, अथवा स्थविर, अथवा प्रवर्तक, अथवा गणि अथवा गणधर अथवा गणावच्छेदक अथवा जिसको मुखिया करके विचरता है उससे पूछकर उसे जाना एवं प्रवेश करना कल्पता है। भिक्षु उन्हें इस प्रकार पूछता है- हे भगवन् ! आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं गृहपति के कुल की ओर आहार के लिए या पानी के लिए, जाने की एवं प्रवेश करने की इच्छो करता हूँ। इस प्रकार पूछने के पश्चात् जो वे अनुमति दें तो उस भिक्षु को गृहस्थ के कुल की ओर आहार के लिये या पानी के लिए निकलना अथवा प्रवेश करना कल्पता है। जो वे