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समाचारी : मिक्षावरीकल्प कप्पति सव्वे वि गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२४॥
अर्थ-वर्षावास रहे हुए विकृष्टभक्त (अष्टम भक्त से अधिक तप) करने वाले भिक्षुक को आहार के लिए अथवा पानी के लिए गृहस्थ के कुल की ओर जिस समय इच्छा हो उस समय निकलना और प्रवेश करना कल्पता है । अर्थात् विकृष्ट भक्त करने वाले भिक्षुक को गोचरी के लिए सभी समय प्रवेश करने की आज्ञा है । मल:
वासावासं पजोसवियाणं निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वाइं पाणगाइं पडिगाहित्तए ॥२४५॥
अर्थ-वर्षावास में रहे हुए नित्यभोजी भिक्षुक को सभी प्रकार का पानी लेना कल्पता है। मल:
वासावासं पजोसवियाणं चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहेत्तए, तं जहा-उस्सेइमं संसेइमं चाउलोदगं ॥२४६॥
अर्थ-वर्षावास में रहे हुए चतुर्थभक्त करने वाले भिक्षुक को तीन प्रकार के पानी लेना कल्पता है। जैसे कि उत्स्वेदिम (आटे का धोवन) संस्वेदिम, (उष्ण, उबाला हुआ जल) चाउलोदक (चावल का धोवन)। मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं छ?भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पति तओ पाणगाइं पडिगाहेत्तए, तं जहा-तिलोदए तुसोदए जवोदए ॥२४॥