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अर्थ-वर्षावास में रहे हुए चतुर्थ भक्त करने वाले भिक्षु के लिए यह विशेषता है कि वह उपवास के पश्चात् प्रात गोचरी के लिए निकलकर प्रथम विकटक (स्पष्ट-शुद्ध) अर्थात् निर्दोष भोजन करके और निर्दोष पानक पीकर के पश्चात् पात्र को साफ करके, धोकर के, यदि उतने ही आहार पानी से निर्वाह हो सकता हो तो, उतने ही भोजन पानी से चलावे । यदि उतने से निर्वाह नहीं हो सकता हो, तो उसको गृहपति के कुल की तरफ द्वितीय बार भी निकलना और प्रवेश करना कल्पता है। मल:
___ वासावासं पजोसवियाणं छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कपंति दो गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा॥२४॥
अर्थ-वर्षावास में रहे हुए षष्ठ भक्त करने वाले भिक्ष को गोचरी के समय आहार के लिए अथवा पानी के लिए गृहस्थ के कुल की ओर दो बार निकलना और प्रवेश करना कल्पता है।" मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं अहमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोयरकाला गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२४३॥
अर्थ-वर्षावास में स्थित अष्टभक्त करने वाले भिक्ष क को गोचरी के समय आहार के लिए अथवा पानी के लिए गृहस्थों के कुल की ओर तोर बार निकलना और प्रवेश करना कल्पता है । मल:
वासावासं पज्जोसवियाणं विकिहमत्तियस्स भिक्खुस्स