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समाचारी : मिक्षाचरी कल्प
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पानी लेना कल्पता है, वह भी अन्नकण रहित, अन्नकण युक्त नहीं । वह भी कपड़े से छाना हुआ, बिना छाना हुआ नहीं। वह भी परिमित, अपरिमित नहीं । वह भी जितनी आवश्यकता हो उतना, पूरा, अधिक या कम नहीं ।
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहित्तए पंच पाणगस्स, अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स अहवा पंच भोयणस्स चत्तारि पाणगस्स, तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायणमेत्तमविपडिगाहिया सिया कप से तद्दिवसं तेणेव भत्तट्ठणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुल भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्त वा पविसित्तए वा ।। २५९ ।।
अर्थ -- वर्षावास में रहे हुए नियत संख्या वाली दत्ति प्रमाण (एक बार में दी जाने वाली थोड़ी सी भी परिमित भिक्षा एक दत्ति होती है) आहार लेने वाले भिक्षुक को भोजन की पांच दत्तियां और पानी की पांच दत्तियां लेनी योग्य है । अथवा भोजन की चार दत्तियां और पानी की पांच दत्तियां भी लो जा सकती हैं । तथा भोजन की पांच दत्तियां और पानी की चार दत्तियां ली जा सकती हैं। नमक के एक कण जितना भी जिसका आस्वाद लिया जा सके वह भी एक दत्तिक गिनी जाती है। ऐसी दत्ति ले लेने के पश्चात् उस भिक्षुक को उस दिन उस भोजन से ही निर्वाह करना चाहिए । उस भिक्षुक को दूसरी बार पुनः गृहपति के कुल की ओर भोजन के लिए या पानी के लिए निकलना और प्रवेश करना नही कल्पता । "
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं नो से कप्पति निग्गंथाण वा