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समाचारी : मिक्षाचरीकल्प
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उत्तर-
र - हे आयुष्मन् ! ऐसा कहने से श्रद्धावान् गृहस्थ वह वस्तु न होने पर नवीन ग्रहण करे, सल्य से खरीदकर लाये, अथवा चोरी करके भी ले आए ।
मूल :--
वासावासं पज्जोसवियाणं निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्प एवं गोयरकालं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवेसितए वा नन्नत्थ आयरियवेयावच्चेण वा उवज्झायवेयावच्चेण तवस्सिगिलाणवेयावच्चेण खुडण्णं वा अवणजायपणं ॥ २४० ॥
अर्थ - वर्षावास में रहे हुए नित्यभोजी भिक्षु को गोचरी के समय में आहार के लिए अथवा पानी के लिए गृहस्थ के कुल की तरफ एक बार निकलना कल्पता है और एक बार प्रवेश करना कल्पता है। सिवाय इसके कि आचार्य की सेवा का कारण हो, उपाध्याय की सेवा का कारण हो, तपस्वी या रुग्ण सन्त की सेवा का कारण हो, जिनके दाढ़ो छ अथवा बगल में केश न आये हों ऐसे लघु (बाल) श्रमण और श्रमणियों की सेवा का कारण हो । अर्थात् यदि इनमे से कोई कारण विद्यमान हो तो एक से अधिक बार भी भिक्षा के लिए जाना कल्पता है ।
मूल :
वासावासं पज्जोसवियाणं चउत्थभत्तियस्स भिक्खुस्स अयं एवइए विसेसे जं से पाओ निक्खम्म पुव्वामेव वियडगं भोच्चा पेच्चा पडिग्गहगं संलिहिया संपमज्जिया, से य संथरिज्जा कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तट्ठे णं पज्जोसवित्तए, से य नो संथरिज्जा एवं से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्त वा पविसित्तए वा ॥ २४९ ॥