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समाचारी : मिक्षाचारीकल्प
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थीण वा सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतु पडियत्तए । जत्थ णं नई निचोयगा निचसंदणा नो से कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतु पडियत्तए । rade कुणाला जत्थ चक्किया एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवं चक्किया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतु पडियत्तए, एवं नो चक्किया एवं णं नो कप्पइ सव्वओ समंता सकोसं जोयणं गंतु पडिनियत्तए ॥ २३३ ॥
अर्थ - वर्षावास रहे हुए निग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को चारों ओर पांच कोस तक भिक्षाचार्य के लिए जाना कल्पता है, और पीछा आना कल्पता है । जहाँ पर नदी हमेशा अच्छे पानी से भरो हुई रहती है, नित्य बहती रहती है, वहाँ पर सभी ओर पांच कोस तक भिक्षाचार्य के लिए जाना और पीछा लौटना नहीं कल्पता । ऐरावती नदी कुणाला नगरी में में रखकर चला जा सकता है और एक पैर स्थल में चला जा सकता है अर्थात् ऐसे स्थल पर चारों ओर पाँच कोस तक भिक्षा के लिए जाना और पीछा लोटना कल्पता है |
है, वहाँ एक पैर पानी पानी से बाहर रखकर
मूल :
वासावासं पज्जोसविताणं अत्थेगतियाणं एवं वृत्तपुव्वं भवइ 'दावे भंते!' एवं से कप्पइ दावित्तए नो से कप्पइ पडिगाहित्तए || २३४ ||
अर्थ - वर्षावास में रहे हुए कितने ही श्रमणों को प्रारम्भ में ही इस प्रकार कहा हुआ होता है कि 'भगवन् ! तुम देना' तो उन्हें इस प्रकार देना कल्पता है, किन्तु उन्हें स्वयं के लिए लेना नहीं कल्पता' अर्थात् वर्षावास स्थित श्रमण श्रमणियों को गुरुजनों ने यह आदेश दिया हो कि अमुक ग्लानादि के लिए अमुक अशनादि लाकर देना तो वह लाया हुआ अशनादि स्वयं को भोगना
नहीं कल्पता ।